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________________ '( ४६ ) शतपदी भाषांतर. रंभना प्रमाणे कंइ मिथ्यात्वमां संवासानुमति जिनमतमां मानेली नथी. तेनां कारण नीये मुजब छे. - सामान्यपणे अनुमति ए कहेवाय छे के आपणे एवी अनुकूळता बतावीये के जेनावडे सामो धणी जे आरंभ के मिथ्यात्वमां प्रवर्ते छे तेना मनमां एवो विकल्प पेदा थाय के मने इहां प्रवर्ततां आ अनुमत करे छे, तो त्यां आपणी अनुमति थइ जाणवी. आ कारणथी आरंभमां संवासानुमति लागे छे अने मिथ्यात्वमा नथी लागती कारण के देश के नगरमां साथे वसता राजा, शेठ, वेपारी, खेडुत, तथा कारीगर वगेरा तमाम लोको जाणे छे के अमो एक बीजानां कामकाज करता होवाथी तेमज राजानो कर भरता होयाथी एक बीजामा मददगार छीथे. आरीले आरममा कामनी सामग्रीमा दरेक जणनी सामेलगिरी होवाथी आरंभमां संवासानुमति रहे छे. अने एथीन यतिनी आरंभना कामनी सामग्रीमा सामेलगिरी नहि होवाथी यतिने संवासानुमति नथी लागती. पण मिथ्यात्वमां संवासानुमति नथी. कारण के मिथ्यात्व तो पोताना अध्यवसायथीज थाय छे. अने ते अध्यवसाय कंइ परथी एटले सहवासिओथी पेदा थता नथी. वळी कदाच श्रावक राजादिकना उपरोधथी लौकिकमिथ्यादृष्टिदेवोनु वंदन पूजन करतो रह्यो होय तोपण त्यां सेनी अनुमति गणाती नथी. कारण के अध्यवसायनेज मिथ्यात्व कहेवाय छे. माटे मिथ्यात्त्रमा संवासानुमति नथी लागती. अगर जो इहां पण संवासानुमात मानीए तो सम्यक्त्वमां पण संवासानुमति लागशे. अने तेम मानवा मांडीए तो अभव्यने सम्यक्त्वानुमति थतां मोक्षप्राप्ति थवानो प्रसंग लागु पडशे.
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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