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________________ । ( ४२ ) शतपदी भाषांतर. सामायिकनो अर्थ करतां कर्तुं छे के ज्ञान, दर्शन, अने चारित्ररूप भावसम्यक्नो जे आय एटले लाभ तेज समाय अने समाय तेज सामायिक माटे सामायिक अंगीकार करतां ज्ञान, दर्शन, अने चारित्रनो अंगीकार थाय छे. ___वळी एज चूर्णिमा व्याख्यांतरे “तिविहं तिविहेणं" नो अर्थ एम को छे जे तिविहं एटले ज्ञान, दर्शन, अने चारित्रभेदे करी त्रण प्रकारचें सामायिक करुं छु. अने तिविहेणं एटले मिथ्यात्व, अज्ञान अने अविरितरूप त्रण भेदे करी सर्व सावधनुं पचखाण करुं . माटे आ व्याख्यामां खुल्लो अंगीकार देखाय छे. ..वळी विशेषावश्यकमां पण सामायिकनी व्याख्या करतां सम्यक्त्व, श्रुत, अने चारित्ररूप त्रण प्रकारचं सामायिक कही वोसिरामि पदनी व्याख्या करतां मिथ्यात्व, अने अविरितनो साग जणाव्यो छे. (४) कोइ पूछे के श्रावके श्राद्ध, संवच्छरी, मासी, छमासी, नवमी, तथा जलांजलि वगेरां करवां के नहि ? तेनुं ए उत्तर छे के ए वां अज्ञानिओनां काम छे. श्रावकनां ए काम नथी. आ बाबत जंबूस्वामी अने प्रभवनो संवाद वसुदेवहिंडिमां छे ते लखीये छीये. . "प्रभव जंबूस्वामीने कहेवा लाग्यो के स्वामिन् , लोकधर्म पण प्रमाण करवो जोइये केमके पितरोने पिंड देनार पुत्र पेदा कयाथी पितरोनी तृप्ति थाय छ एम विद्वानो कहे छे. त्यारे जंबूस्वामी तेने कहेवा. लाग्या के ए वात जूठी छे. कारण के भवांतरगत जीवो पोताना कर्मने आधीन रहेल छे. ते जीवोनुं जेम पर भवे ऊपज, कर्माधीन छे तेम आहार पण कर्माधीनज होवो जोइये. वळी विचार करो के आहार तो अचेतन छे, ते पुत्रोए आप्यो थको
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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