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________________ ( ४० ) शतपदी भाषांतर. विचार ३० मो. (श्रावके त्रिविधत्रिविधे मिथ्यात्व परिहरवू जोइये.) प्रश्न:-श्रावकने मिथ्यात्वनो परिहार त्रिविधे त्रिविधे छे के केम ? - उत्तरः-(१) श्रावकने मिथ्यात्वनो परिहार त्रिविधे त्रिविधेज छे. केमके साधु अने श्रावकने सम्यक्त्वमां कशो फरक नथी. कारण के वसुदेवहिडिमां वात आवेली छे के दृढधर्मकुमार कहेवा लाग्यो के कुमार, अर्हत्ना शासनमां साधु अने श्रावकने विनय सरखो छे तथा “जिनवचन सत्य छै" एवी दृष्टि पण मरखी छे बाकी चारित्रनी बाबतमा साधुओ महाव्रतधरनार छे अने श्रावको अणुव्रत धरनारा छे. तेमज श्रुतनी बाबतमा साधुओसमस्तश्रुत धरनार छे अने श्रावको नवतत्वमा कुशल होय छे. - उपदेशमाळानी वृत्तिमां पण ए वात एवीज रीते कही छे. (२) वळी दर्शनसत्तरिमां पण श्रावकने मिथ्यात्वनो शिविधे विविधे त्याग कह्यो छे. अने त्यां मिथ्यात्वनुं स्वरूप आ प्रमाणे लख्यु छे. "मिथ्यात्वना बे भेद छे:-लौकिक अने लोकोत्तर. ए दरेकना पाछा बे भेद छे:-देवगत अने लिंगिगत. त्यां लौकिकदेवगत ते ए के लौकिक देवोमा मुक्तिनिमित्ते पूज्यतानी बुद्धि धरी तेमनु स्मरण, स्तवन के पूजन करवं. लोकोत्तरदेवगत ते ए के लोकोत्तर देवमां पण इच्छा अने परिग्रहादिक लौकिक देवनां लिंगोनो आरोप करवो. ___ लौकिक लिंगिगत ते ए के तापस के शाक्यमती श्रमण वगेरा लिंगधारीओने वंदन पूजन के, सत्कार करवो अथवा तेमनी साथे वगर बोलावे आलाप करवो के तेमनी साथे सोबत वगेरा करवी.
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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