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________________ शतपदी भाषांतर. . बाहेर जq न कल्पे बाकी बे के त्रण के चार जणी थइने बाहेर जवं कल्पे. तेनुं उत्तर ए छे के वृहत्कल्पमां एवो पाठज नथी किंतु चित्रावाळगच्छना पद्ममूरिए तेवो पाठ रचीने लखी काढ्यो छे. मूळपाठ, भाष्य तथा चूर्णिमां तो रातनी वेलाएज विचारभूमि • तथा स्वाध्यायभूमि बाबतज बेत्रण के चार जणी माटे विधि ल खी छे. कंइ दिवसमां गोचरी के साधुवसति के बहिर्भूमि के विहारादिकमां जवानुं नथी लख्यु. छतां ए सूरिए आजुबाजुना पदो छोडी सामान्यपणे "बाहेर जq" पद उमेर्यु छे ते बहु अयुक्त छे. कोइ कहेशे के त्यारे राते के विकाळे पण विचारभूमि तथा स्वाध्यायभूमिए तो बे जणी जइ शके के नहि? तेनुं ए उत्तर छे के तेम पण नहि थइ शके कारण के पाठांतरमां ते बाबत पण बे जणीनो निषेध कर्यो छे. अने ते बीजो पाठन चूर्णिकारे प्रमाण को छे. माटे दरेक कामे त्रण साध्वीयोएज जर्बु. (९) कोइ कहेशे वृहत्कल्पना पांचमा उद्देशाना भाष्यमां बीजासहित बाहेर जवू लखेल छे माटे बे जणी पण जइ शकशे तेनुं ए उत्तर छ के ए गाथानी बे चूर्णिकारोए तथा वृहद्भाष्यकारे पण व्याख्या करी नथी माटे तमेज कहो के ए गाथा उत्सर्गपदनी छे के अपवादनी, जो अपवादनी तो वांधोज नथी. अने जो कहेशो के उत्सर्गनी तो ते मोहोटी भूल छे. कारण जे भद्रबाहु. स्वामि आगल एज ग्रंथमां सर्व स्थळे बे साध्वीयो माटे प्रायश्चित्त कहे छे तेज भद्रबाहुस्वामि पाछा इहां अपवाद विना पण सामान्यपणे बे साध्वीने विचरवानी रजा आपे ए केवु गणाय ? वळी आगमनी व्याख्या तो परस्पर बीजा आगमना पण अविरोधे करवी जोइये. तो एकज ग्रंथमां कर्ताना पूर्वापर वचन बाधित केम कराय? माटे ए गाथाने यातो अपवादनी मानवी
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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