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________________ लघुशतपदी. ( २०१ ) अने शतपदीमां जे चूर्णिना वचनथी श्रावकने औपग्रहिक रजोहरण ठेराव्युं छे ते चळवळु नहि पण मोरपीछनुं दंडासण संभवे छे. केमके निशीथसूत्र तथा तेना भाष्यमां साधुने दारुदंडमय पादपोछणुंज राखवानी मनाइ पाडी छे. माटे चळवळु साधु पासे होवुं घटे नहि. अने मुख्य रजोहरण तो मुनि अवग्रहथी बाहेर ' करे नहि. माटे श्रावक जे साधु पासेथी रजोहरण मागे ते मोरपीछनुं समजबुं. कारण के ओघनियुक्ति वगेरामां साधु ने मोरपीछ राखवी पण कहेल छे. अगर एम न होय तो कहो कया गच्छमां साधुओ चळवळां राखे छे, अने धर्मध्यान वेळा श्रावकोने आपे छे, ते जणावो. वळी प्रश्नव्याकरणमां जे कधुं छे के अदत्त रजोहरण, शय्या, चलोटा, मोपती तथा पादपोंछणा मुनिए नहि लेवा. त्यां वळी वृद्धो एवो विशेष जणावे छे जे गीतार्थ श्रावकना घरे साधुनो वेष पूजाय छे, तेथी तेना घरे साधुना उपकरण संभवे छे. वळी एज प्रश्नव्याकरणमां “नवि पूयणाए " पदनी टीकामां लख्युं छे के पूजना करीने एटले मोती के नोकरवाळी दइने आहार न लेवो. ते टीकानुं वचन वार्त्तमानिक आचार्यनुं छे. ( एटले के ते टीका आधुनिक आचार्य अभयदेवसूरिनी करेल छे माटे प्रमाण नहि थाय ' . ) महानिशीथमां पण कां छे के गृहस्थ यतिलिंगने पूजे, पण धारे नहि. १ आ वाक्यार्थ पर्यायमां स्पष्ट लखेल छे. ૨૬
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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