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________________ शतपदी भाषांतर. (१५७ ) त्यारे स्नात्र, विलेपन, पुष्प, तथा धूपादिक सावधपूजा की करो छो? वळी चैत्यमां भगवान्ने कां बेशाडो छो, कारण के भगवान् कई चैत्यवासी न हता. (मूर्तिनो आकार,) (२) तमे भगवान्ना जेवुज बिंब करावq मानो छो, त्यारे दाढी मूछ का नथी करावता ? अमे तो एम मानीये छीये जे बिंब जेम रमणीय लागे तेवाज आकार- करावq घटित छे... (३) ज्यारे तमे व्रतनी अवस्था लइने बळि वस्त्राभरण निषेधो छो त्यारे बिंबने स्त्रीओ का अडके छ ? तेमज बळि कां चडावो छो, केमके तमारा मते तो केवळिने कवलाहार होयज नहि. अगर जो तमे छअस्थावस्था गणी बळि चडाववी मानशो, तो पण ते थाळमां कां चडावो छो, केमके भगवान् तो करपात्री हता, माटे हाथमांज बलि चडाववी जोइये. वळी तमारा मतमां तो भगवान् ऊभा रहीनेज भोजन करे एम कयुं छे, त्यारे पलांठी आ. सने बेठेली प्रतिमा आगल का बलि चडावो छो? एज रीते तमारा मते भगवान् दिवसमा एकवारज आहारपाणी करे छे, त्यारे वारंवार वळि कां चहावो छो ? हवे जो कहेशो के भगवान् तो सिद्ध थया बाकी ए तो फक्त भक्ति सारुंज करीये छीये, तो त्यारे वधारे भक्तिसूचक वस्त्राभरणादिकनो का इनकार करो छो ? (पवित्रापवित्र जीवांग.) (४) जो कस्तूरी वगेराने जीवना अंग गणी अपवित्र मानो छो तो चामडाथी मडेला मृदंग, वीणा वगेर वाजींत्रो का वगाडो छो, गोपुच्छनी दांडीसहित रहेला चामरो का फेरवो छो, छा:
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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