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________________ ( १२८) शतपदी भाषांतर. विचार ९८ मो. प्रश्नः कल्पभाष्य तथा चूर्णिमां कयु छे के "निश्राकृत नहि कल्पे किंतु ज्यां साधुनी निश्रान होय ते कल्पे," माटे निश्राकृ. वचैत्य अनायतन होवाथी त्यां वांदवा जq निषेध्युं छे, छतां तमे केम वांदो छो? ____ उत्तर:-आ प्रश्न तमे ग्रंथनो पूर्वापर संबंध विचार्या वगरज करो छो; कारण के त्यां आगल चालतां तेषां चैत्य वांदवां तो ठेराव्यांज छे. मात्र त्यां व्याख्यान करवानी मनाई करी छे ते पण उत्सर्गे मनाई छे, अपवादे तो तेनी पण रजाज छे. __आ स्थळे ते बाबतनो त्यां कहेलो विचार लखी बतावीए छीये. “स्थविरगीतार्थ गुरु, निश्राकृतचैत्यमा जता, सां हमेशांना के नवा. ऊभा करेल मंडपादिक जाणीने, पोताना शिष्योने, ते चैत्यने वांदवानी विधि, चैयमा पेठा अगाऊज बतावी घे. ते विधि ए के निश्राकृत के अनिश्राकृत सर्व चैत्योमा त्रणथुइ कहेवी. कदाच वखत थोडो होय के चैत्य घणां होय तो दरेकमां एक एक थुइ कहेवी. त्यारबाद अनिश्राकृतचैत्यमा जइ समोसरण पूरवू एटले के व्याख्यान दे. कदाच तेवू चैत्य नहि होय तो शिष्योने वसतिमां मोकलावी गुरुए निश्राकृतमां पण व्याख्या देवी, नहि तो लोकमां अपवाद थाय तथा श्रावकोनी श्रद्धा भंग थाय." विचार ९९ मो. प्रश्नः शक्रस्तवमा "जेय अईया सिद्धा" ए गाथा केम नथी कहेता.
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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