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________________ ( ९८ ) शतपदी भाषांतर. (५) अर्धं खभापर अने अर्ध लटकतुं उत्तरासंग माफक नहि राखq. (६) चलोटापर भेठ नहि बांधवी. (७) गृहस्थ लिंग नहि करवू. (८) अन्यतीर्थिकनुं लिंग पण नहि करवं. अने ए बावतमां नीचे मुजर अपवादो लखेल छे. (१) मांदानी वेयावच करता के पोते मांदो होता अथवा प्रा__हुणानी विश्रामणा करतां साधु भेठ बांधे. (२) लटकती पूछडीवाळु फेहूं के उत्तरासण नानो शिष्य होय ते करे अथवा अनाभोगे मुनि पण करी जाय. (३) साध्वीनी माफक मावरण वर्षाऋतुमां कराय छ, अथवा सिंध वगेरा देश पामीने पण कराय छे. इत्यादि अपवाद टाळी निःकारणे गृहिलिंग के अन्यलिंग करता मूळपायश्चित्त लागे छे. HONE विचार ८१ मो. प्रश्नः-निशीथ तथा पर्युषणाकल्पनी चूर्णिमा कयु छे के मुनि ज्यां आषाढ मुदि दशमीना रहेला होय अथवा आषाढ मासनो मासकल्प रहेला होय ते क्षेत्र जो चोमासु रहेनाने लायकहोय अने त्यां संथाराना घासनो तथा स्थंडिळभूमिनो योग ठीक होय अने मोटी वरषाद पटवा मांडी तो त्यांज आषाढ मुदि पू. नमना दिने मुनिओ पर्युषणा करे.ए उत्सर्ग मार्ग छे. अने वाकीना पंचकवृद्धिना सघळा काळ अपवादरूप छे. माटे तमे आषाढी पूनमनीज पर्युषणा केम नथी करता? उत्तर:-यहां जे “पर्युषणा करें" एवो शन्द छे तेनो एट
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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