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________________ शतपदी भाषांतर. (४५) वळी आचार्य तथा वादिमुनि वगेराने उत्सर्गथी पण हाथपग वगेरा धोवानी अनुज्ञा छे. कारण के व्यवहारभाष्यमा आचार्यना नीचे मुजब पांच अतिशय कह्या छे. (१-२) आचार्यना आहार पाणी सामान्य मुनिओकरता श्रेष्ट होय. (३) आचार्यनां कपडां मेलां थतां धोवाय छे. कारण के तेथी परवादीओ डर खाए तथा अवज्ञा न करे. तेमज स्वच्छ . वस्त्रथी मंडळमां आचार्य तरत ओळखाय, (४) आचार्य. • (५) आचार्यना हाथ, पग, आंख, दांत वगेरा नियमा धोवाय छे. कारण के तेथी बुद्धि तीक्ष्ण थाय छे, वचननी पटुता थाय छे, अने शरीरनी अलज्जनीयता थाय छे. आ पांच अतिशयो केटलाक दृढशरीरवंत आचार्य नहि पण भोगवे. ___माटे सामान्य मुनिओए वगर कारणे हाथपग धोवा जोइये नहि. कारण के श्रावको पण एवा मनोरथ करेछे के क्यारे अमे मळमलिन थई जूना वस्त्र पहेरी मधुकरवृत्तिए मुनिपणुं पाळशं एम . योगशास्त्रमा कर्तुं छे. वळी प्रव्रज्याविधानमां पण कयुं छे के मुनिए यावजीव नहावु नहि, भूमिए सू, केशनो लोच करवो, अने प्रतिकर्म एट. ले शरीर तथा उपकरणने घठारवां मठारवां नहि. लौकिकमां पण कां छे के सारीशय्या, सारो आहार, सा. रां वस्त्र, तांबूळ, स्नान, सणगार, दातण, तथा सुगंधी चीजो ए शीळनां बिगाडनार छे. .
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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