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________________ ( ८२ ) शतपदी भाषांतर. बळी स्निग्ध खावाथी बुद्धिबळ वधे छे. तेथी स्निग्ध आहार छicar मुश्केल छे. पंचकल्पमां पण कह्युं छे के स्निग्धमधुर पूर्वे खावं. विचार ६६ मो. प्रश्नः - व्यवहारभाष्यमां कां छे के “आठम, पांखी, चोमासी, तथा संवछरीना दिने चोथ, छठ, तथा अठम तप नहि करतां तथा चैत्य तथा साधुओने नाह वांदतां प्रायश्चित्त लागे" माटे ए पर्वोमां ए भांखेलुं तप नहि करतां नियमा प्रायश्चित्त लागे के केम ? उत्तर:- जे समर्थ होय छतां नहि करे तेने प्रायश्चित्तं लागे. बाकी जे असमर्थ होतां पोतानी शक्ति मुजब जे कंइ तप थइ शके ते करतो रहे ते आराधकज छे. निशीथचूर्णिमां कहां छे के अपवादपदे एटले के जे उपवास करवा असमर्थ होय, अथवा ग्लान होय, अथवा ग्लाननुं वैयाहृत्य करनार होय, इत्यादि कारणे ते पर्युषणना दहाडे आहार करतो थको पण शुद्ध जाणवो. वळी प्रकरणोमां पण कनुं छे के तप तेवुं करवुं के जे करतां मन माटुं न चींतवे, इंद्रियोने हरकत न पडे अने अपर कार्य अटके नाही. • +3€€ विचार ६७ मो. प्रश्नः - साधुए बहिर्भूमिए नैऋतकोणमांज जवं जोइये के केम? उत्तरः- आवश्यकनिर्युक्तिमां कह्युं छे के अपर दिशाओ -
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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