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________________ ( १९) वृत्ति अर्थात् महारंभ-महापरिग्रह आदि अनन्तानबन्धी कषाय या उसके समकक्ष तथारूप में परिणत होने योग्य कषाय के कार्य माने गये हैं। ग्रन्थों में ऐसे अन्य कई कार्यों के उल्लेख हैं । ९. कमठ, अभीचकुमार, महाबलमुनि (भ. मल्लिनाथ का पूर्वभव) और सूर्यकान्ता ये क्रमशः अनन्तानुबन्धी चतुष्क के उदाहरण हैं । अकल का पुतला नयनसुखजी विज्ञ दृढ़ श्रद्धालु श्रावक थे । उन्हें अपने लघु पुत्र मदन की काफी चिन्ता थी । वे उसके विचित्र व्यवहार से त्रस्त थे । मदन बुद्धिमान था । उसकी तार्किक शक्ति प्रबल थी और घर के अधिकांश जन उसकी बुद्धि का लोहा मानते थे । उसके भाई और भौजाइयाँ उसकी बुद्धि की खूब प्रशंसा करती थीं । मदन में भी कुछ नया करने की धुन थी । वह विज्ञान का विद्यार्थी था । ___नयनसुखजी की यह भावना थी कि 'मैंने सभी पुत्रों को गृह-संसार में फंसा दिया है। किन्तु यह मदन मेधावी है । यह जिनशासन की सेवा करे तो जिनशासन की महिमा बढ़ा सकता है और उज्ज्वल यश का वरण करके, अमर बन सकता है। किन्तु उनकी यह भावना सफल हो यह संभव नहीं था । मदन के विचार आधुनिक नेताओं के विचार से प्रभावित थे । एक दिन किसी विषय पर चर्चा करते हुए नयनसुखजी को इस बात का पता लग गया। नयनसुखजी किसी प्रसंग पर कह रहे थे-"भगवान् सर्वज्ञ थे । उनकी बात झूठी नहीं हो सकती है।" इसका प्रतिवाद करते हुए मदन बोला"पिताजी ! आपके सर्वज्ञ भगवान को वैज्ञानिकों ने झठा कर दिया है। आपके भगवान ने कहा--'परमाणु अविभाज्य है' । परन्तु वैज्ञानिकों ने एटम-परमाणु का विभाजन करके शक्ति का स्रोत खोल दिया है।" नयनसुखजी आधुनिक विज्ञान से अधिक परिचित नहीं थे। उन्हें यह पता नहीं था कि अणु में न्यूट्रान, इलेक्ट्रान, प्रोट्रान आदि होते हैं ।
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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