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________________ ( २३९ ) वे दृष्टान्त जब भी उनसे उपलब्ध भाव के प्रयोग का अवसर होगा, तब वे सहज ही उपस्थित हो जायेंगे । ६. साधना का यह अंग अत्यन्त सरल और बहुजन-सुलभ है । दृष्टान्तों का महत्त्व दिट्ठता नानुरंजंति, केवलं जण माणसं । ते कसायाण जेउं तु, पयोगा विव होंति हि ॥३९॥ - दृष्टान्त जन-मानस का मात्र अनुरंजन नहीं करते, किन्तु वे कषायों के जीतने के लिये प्रयोगों के सदृश ही होते हैं । टिप्पण - १. कथा-कहानियाँ जनसमूह में प्राय: मनोरंजन के लिए ही समादृत हैं । २. भगवान जिनेश्वरदेवों ने सिद्धान्तों को सरलता से समझाने के लिये कथाओं का प्रयोग किया है । ३. कर्म और कर्मफल को समझने के लिये भी धर्म कथाओं का महत्त्व है । ४. धर्मकथाओं से भी मनोरंजन तो होता ही है । किन्तु उनका उद्देश्य मनोरंजन करना मात्र ही नहीं है । ५. मनोविकारों से होनेवाली उलझनों को समझने के लिये दृष्टान्त बहुत उपयोगी हैं । ६. कषायों की हानि और उनके जय के प्रयोगों को दृष्टान्तों से जाना जा सकता है । ७. आराधना और विराधना के प्रकारों और उनके सुफल और दुष्फल को दृष्टान्तों से समझा जा सकता है । ७. विरोधी भाव द्वार क्रोध आदि के जय के हेतुरूप भाव कोहं तु खंतिएमाणं, विणएणऽऽज्जवेण य । मायं लोहं च तोसेण, भावेणेवं अघं जिणे ॥४०॥
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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