SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २०१ ) "सब आपके ही हैं। आप जिसे चाहें, उसे अपने पास रख लीजिये। यदि वे रहना चाहेंगे तो मैं मना नहीं करूँगा।" "मुझे किशोर बहुत पसंद है।" "अच्छा !" उसने किशोर से सारी बात कही। किशोर को पिता की बात पहले तो बहुत बुरी लगी। फिर उसने पिता की परिस्थिति समझी और सोचा"कहीं पर रहें। रहना है मर्यादा से और आप भला तो जग भला।' क्षण भर बाद ही किशोर बोला-"पिताजी! आपकी आज्ञा शिरोधार्य है। आपको अपने लाडले किशोर की जरा भी शिकायत सुनने को नहीं मिलेगी।" प्रसन्न होकर पिता बोले-"किशोर ! मझे तुझसे यही आशा थी। जाओ, यह भी जीवन की एक कसौटी है। इस कसौटी पर तुम सौ टंच सोने की तरह खरे उतरना, वत्स!" किशोर रहने के लिये श्रेष्ठी के घर आ गया। किशोर ने अपने भक्ति-पूर्ण व्यवहार से श्रेष्ठी दम्पत्ति का मन मोह लिया। किशोर दक्ष और व्यवहारकुशल युवक था। उसका स्वभाव परम मधुर था तथा कार्य करने में जरा भी प्रमाद नहीं था। कठोर से कठोर बात सुनकर भी वह शान्त रह सकता था और अपने व्यवहार को संयत रख सकता था। फिर अपने मन पर भी कोई असर नहीं रहने देता था। श्रेष्ठी उसपर पूर्णतः मुग्ध हो गये। उन्होंने उसे विधिवत् गोद ले लिया और उसके लग्न भी कर दिये। शान्ति से जीवन की गाड़ी चल रही थी। परन्तु कभी-कभी श्रेष्ठीजी के उग्र स्वभाव के कारण दुःखमय वातावरण बन जाया करता था। यद्यपि किशोर के विनोदी स्वभाव के कारण वातावरण लम्बे समय तक तंग नहीं रह पाता था, फिर भी वह अब यह चाहने लगा था कि पिताजी का माथा थोड़ा शान्त रहे तो अच्छा। एक बार एक महान् संत का पदार्पण हुआ। लोग उनके प्रवचनों से बड़े प्रभावित थे। पिता-पुत्र दोनों प्रवचन में गये। मुनिराज ने क्रोध कषाय से होनेवाले अनिष्टों का चित्रण करते हुए उसके परित्याग का प्रभावशाली प्रेरक उपदेश दिया। किशोर ने अच्छा अवसर देखा। प्रवचन के पश्चात
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy