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________________ __( १५० ) वे मुनिजी साश्चर्य उनकी ओर निहारने लगे। फिर कुछ क्षण मौन रहने के बाद वे बोले - "क्या कहा ? समाज ने बाँध दिया है हमें ? हमारी इन्द्रियों को बांध दिया है ?" "हाँ ! ऐसा ही तो है !" "संयम इन्द्रियों का बन्धन है क्या ? समाज ऐसे बन्धन में क्यों बाँधने लगा हमें ? क्या हम स्वयं साधना से बँधे हुए नहीं हैं ?" शीलवान मुनि के मुखपर मुस्कान फैल गयी। वे हठ से बोले - "हम साधना से बँधे हैं ! कैसी बात करते हो, मुनिजी! हम तो मात्र धर्मप्रचारक हैं और समाज ने हमें संयम के नाम पर बाँध दिया है ! जरा भी हमसे कोई ऊँची-नीची बात हुई नहीं कि कोलाहल होने लगता है !" "मुनिजी! आपका चिन्तन मुझे विपरीत लगता है।" मुनि शीलवान यह चाहते थे कि मेरे नाम की धूम, कश्मीर से कन्याकुमारी तक-अटक से कटक तक मच जाय । इसके लिये उन्होंने उपाय सोचे और किसी इतर प्रसिद्ध मुनिजी के पीछे पड़ गये। उनके खण्डन की धूम मचा दी। लोगों को भी मजा आ गया और वे भी प्रसिद्ध मुनियों की पंक्ति में आ गये। इतनी-सी प्रसिद्धि से क्या होता? यह तो अपने घर में पुजाने जैसी बात हुई ! उन्होंने अपने पीछे भीड़ जमा हो-ऐसे उपाय तलाशे । वे प्रसिद्धमनोमोहक प्रवचनकार हुए। उन्होंने कई प्रकार के सम्मेलनों की धूम मचा दी। शोधपीठों के स्थापन की बिगुल बजायी। उनके पीछे लोगों की भीड़ जमा होने लगी । वे यशः-कीति के मैदान में दौड़ रहे थे । वे बड़ा क्रान्तिकारी चिन्तन प्रस्तुत कर रहे थे और लोग भी उनके पीछे-पीछे दौड़ रहे थे। उन्होंने विचार प्रस्तुत किये – 'धर्म रूढ़ियों से बँध गया है। धर्म का निर्मल प्रवाह गंदा हो गया है । बन्धन तोड़ने होंगे । रूढ़ियाँ दफनानी होंगी। आमूल-चूल परिवर्तन करना होगा। नींव से क्रान्ति करनी होगी....' उनके इन स्वरों का विरोध भी होने लगा।
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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