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________________ ( १२३ ) टिप्पण-१. क्रोध के कारण सज्जन व्यक्ति भी तुच्छ= गणवैभव से खाली हो जाता है-अधम हो जाता है । २. तुच्छ व्यक्ति का व्यवहार अत्यन्त निम्नस्तर पर चला जाता है । अहे शब्द की 'पुनरावृत्ति से अति घृणित भाव सूचित होता है । ३. सर्व-अर्थ अर्थात चारों ही पुरुषार्थ । क्रोध पुरुषार्थों का नाशक है । ४. यहाँ खिव धातु अन्तरात्मा से दूर करने के अर्थ में प्रयुक्त है अथवा 'उसे कुचलने के लिये चरण के नीचे क्यों नहीं फेंक देता है अर्थात् उसके उदय रूप चरण से दबकर तू अनादिकाल से अपने भाव वैभव का नाश करता रहा है, अब उसे सच्चरण =सम्यक् चरित्र से क्यों नहीं कुचल देता है' यह अर्थ भी ध्वनित होता है। (२) मान-हानि-पश्यना मान के दूरगामी दुष्फल-मान से देव-गुरु की आशातना जिणं माणेण होलित्ता, गोसालो कि लहिस्सइ । सीलधरो जमाली वि, माणेण खलु लज्जिओ ॥७॥ गौशालक अभिमान से जिनदेव की अवहेलना करके क्या लाभ “पायेगा ? और शील-सम्पन्न जमालीजी भी मान से लज्जित हुए। टिप्पण-१. मान से जीव सुदेव और सुगुरु की आशातना करता है। २. गौशालक स्वयं सर्वज्ञ तीर्थंकर न होते हुए भी अपने आपको इसी रूप में घोषित करता रहा और फिर जिनसे ज्ञान प्राप्त कर उसने तेजोलेश्या प्राप्त की थी, उन्हीं सद्गुरु भगवान महावीरदेव पर उसी तेजोलेश्या का प्रयोग किया। यह मान की पराकाष्ठा थी। ३. इससे उसे क्या फल मिला ?-भव भ्रमण और अपार दुःख । भविष्य काल की क्रिया के प्रयोग का आशय यह है कि अभी तो गौशालक बारहवें देवलोक में है। परन्तु इसके बाद उसे अभिमान का दुष्फल प्राप्त
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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