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________________ ( २ ) आवा विचित्र तपो अवश्य करवा जोइए, जेथी देहनो मोह अल्प थवा साथै नितान्त कर्मक्षय थाय. " 59 उपकरण तथा साधुए पोताना निर्वाह अर्थे वस्त्र, पात्र, कांबली, रजोहरण, मुखवस्त्रिका आदि उपकरणो एटलाज राखत्रा के जेनाथी निर्वाह थवा साथे भारभूत थइ मूर्च्छाकारी न बनाय. ते पण अल्प कीमतनाज राखवा जेथी कोइने उठाववानी इच्छा न थाय ने पोताने मोह न उपजे. आ उपकरणो पण निर्दोष, न्यायथी आवेल अने साधु माटे बनाव्या न होय, पैसाथी खरीद्या न होय तेवा राखवा, यावत् जेमां साधुपणानी शोभा वधे तेवा उपकरणो साधु राखवा उचित छे; कारण के ग्रंथकर्ताए अहीं ' उपकरण' शब्द मूक्यो छे तेनो अर्थ ' उपक्रियते इति उपकरणं ' जे उपकार करे ते उपकरण. परमार्थ के जेने धारण करवाथी आत्माने उपकार थाय, आत्मा लघुकर्मी थाय तेज उपकरणो; सिवाय उपधिना बदले उपाधिभूत समजवा. पुनः उपदेशनो विषय ग्रंथकार दर्शावे छे गुर्वी पिंडविशुद्धिश्चित्रा, द्रव्याद्यभिग्रहाश्चैव । विकृतीनां संत्यागस्तथैकसिक्थादिपारणकं ॥ २-५॥
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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