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________________ (७६) अथवा दीर्घ मुसाफरी करवानुं होय तो पण साधुए पगमां चामडाना अथवा तेवा अन्य प्रकारना जोडा पहेरवा नहीं. उंची के नीची, सम के विषम, कांकरावाळी के साफ गमे तेवी जमीनमां पलंग, खाटलो के गादी-तकिया विना साधुए शयन करवु, मात्र पोतानो उननो के तेवो एकाद बे कपडानो संथारो करी तेना पर शयन करवू जोइए. साधुए रात्रिना चार प्रहर पैकी पहेला अने छेल्ला प्रहरमां स्वाध्याय, ध्यान अने ईश्वरभक्ति करवी तथा बीजा अने त्रीजा प्रहरमां एटले वधारेमां वधारे छ घंटानी निद्रा लेवी उचित छे. जो के साधुए प्रमाद करवो न जोइए तथापि शिथील एवं शरीर विना निद्राए अवश्य अस्वस्थ थइ जाय, अधिक आलस आवे ने अनुक्रमे धर्मसाधन छुटी जाय छे, एवं दर्शनावरणीयकर्मना उदयथी निद्रा पण जरुर आवे छे, माटे अहीं बे प्रहरनी निद्रा जाणवी; परंतु रात्रिना आठ अने दश घंटानी निद्रा, दिवसना बेबे कलाकोनी निद्रानो प्रमाद सेववो ए तो कदापि उचित न गणाय. फरी साधुए शीत, उष्ण अने वर्षा एत्रणे ऋतुमा पोतानी शक्ति माफक सम्यग् रीते अनुकूल-प्रतिकूल शीत तथा उष्ण आदि परीषहो सहन करवा जोइये. मस्तक पर छत्र धारदुं न जोइए, कोइ पण वाहन आदिमां बेसबुं न घटे. अत्र जे परीषहो सहन करवानुं मुनियो माटे कयुं छे ते त्यां सुधी ज के पोतानी शुभ परिणतीओ चडती रहे, शरीरनी शक्तिमो बनी रहे, आर्तध्यान संबंधी क्लिष्ट परिणामो उपजे नहीं, वधुमां कोइ पण रीते
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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