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( ६७ ) " उद्देश"
गत अधिकारना अंतभागमां प्राचार्यश्रीए जणाव्यु केबाल अादि योग्य वर्गने तेश्रोनी योग्यता अनुरूप उपदेशक उपदेश आपे तोज नियमेन बोधि पमाडे छे.आ परथी क्या श्रोताने क्या प्रकारनो उपदेश आपवाथी लाभ थाय ? ए वात हवे समजवानी नितान्त आवश्यकता कही. अतएव ग्रंथकर्ता आ बीजा प्रकरणमां क्या क्या जीवोने क्या क्या प्रकारनो उपदेश आपवो तेनुं स्वरूप दर्शाववा प्रयत्न करे छे, अर्थात् बीजा अधिकारनो प्रारंभ अने तेनो संबंध आदिमां आ रीते ग्रंथकारे दर्शान्यो छे.बालादिनामेषां यथोचितं,
तद्विदो विधिर्गीतः। सद्धर्मदेशनायामयमिह,
सिद्धान्ततत्त्वज्ञैः ॥२-१॥ मूलार्थ-बाल, मध्यम आदिनुं स्वरूप जाणनार उपदेशक प्राचार्योए पूर्वे जणावेल बाल आदिने यथोचित रीते उपदेश केवो आपवो ते संबंधमां सद्धर्मनी देशनाविधिनुं स्वरूप आ प्रस्तुत प्रकरणमां कहेवाशे अर्थात् जे रीते सिद्धान्ततत्त्वज्ञ पुरुषोए विधि जणाव्यो छे, ते प्रमाणे प्राचार्यश्री कहेशे.