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________________ (५३) कार्योमां-स्वर्ग तथा मोक्ष आदि विधेयकार्योमां, आत्मिक शुभ विधानोमां अतींद्रयार्थदर्शी एवा सर्वज्ञ भगवंतोनुज वचन मान्य, प्रतिष्ठित, विश्वसनीय होय. हेतु एज के तेयोनेज तत् पदार्थ संबंधी यथास्थित अबाध्य ज्ञान होय छे, एटले तेत्रोना कथनमां लेश पण विरोध अथवा विसंवादिपणुं होतुं नथी. विरोध के विसंवादिपणुं तेनोना ज कथनमां होय के जेनोमां राग या द्वेष उद्भूत अनुद्भूतरुपे विद्यमान होय, अने तेथी ज तेश्रो स्वार्थना मोहमां खेंचाई अगर मानादिमां आवी जइ इच्छाथी, अनिच्छाथी असत्य सत्यासत्यपणे भरडी मारे. ज्यां असत्य के सत्यासत्य उत्पादक राग या द्वेषनुं मूल ज नथीसर्वथा अभावज थइ गयो छे, तेश्रोना कथनमां असत्य सत्यासत्यनो अंश क्यांथी संभवे ? नज संभवे ए वात सामान्य बुद्धिए पण स्वीकारी शकाय एवी छे. कडं पण छे रागाद्वा द्वेषाद्वा मोहाद्वा वाक्यमुच्यते ह्यनृतम् । यस्य तु नैते दोषा ____तस्थानृतकारणं किं स्यात् ? ॥१॥ अतएव ग्रहीं ग्रंथकर्ता परलोक संबंधी विधेय बाबतोमां सर्वज्ञवचन ज प्रमाणिक होय एवं जणावी प्रतिपादन करे छे के-जे शास्त्रो खास सर्वज्ञना कथन करेल होय एम प्रमाण अने अनुभव पण मान्य करे ते ज शास्त्रवचन शुद्ध जागावू-ग्राह्य जाणवू. निदान के--सर्वज्ञवाक्य ते ज अदंपर्य-परमार्थ शुद्ध जाणवू. ग्रंथकार या वचननी विशेष परीक्षा माटे कहे छे के
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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