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________________ (५१) अन्तमां पाटलं जाणवु जरुरी छे के-'भागमतत्त्व' नी परीक्षानो प्रकार ग्रंथकर्ता दर्शावी रह्या छे, तेमां जे आगमवाक्य प्रमाण तथा शास्त्रीय वचनथी अखंड्य होय,१ उत्सर्ग अने अपवादना विषयवालुं होय.२ अदंपर्यपरमार्थवडे संशुद्ध होय ३, ते ज वचन हितार्थ ने स्वात्महित अर्थे उपादेय गणाय. आ वात आपणे उपर जोइ गया, तेमां प्रमाण तथा शास्त्रीय वचनथी जे आगमवाक्य अखंड्य होय, ए रीतनो भागमतत्वनी परीक्षानो प्रथम प्रकार ग्रंथकारे दर्शाव्यो. निदान के-उपर कह्या प्रमाणे आत्मा आदि पदार्थनी अस्तिता जे शास्त्रमा कथन करी होय ते शास्त्रोक्त वाक्यो आदेय जाणवा. हवे रह्यो उत्सर्ग तथा अपवादे करी संशुद्ध ए बीजो प्रकार, एटले जे शास्त्रना वचनो उत्सर्ग वाक्यरूप तथा अपवादवाक्यरूप उभयथा शुद्ध होय, अहीं उत्सर्ग तथा अपवादनुं स्वरुप दशमां श्लोकना विवरणमा यत्किंचित् देखाडयुं छे, एटले अहीं तत्संबंधमां विशेष जणावधानी जरुर रहेती नथी, तेमज प्रथम प्रकारनी परीक्षामां ते विषय आवी जतो होवाथी ग्रंथकारे भिन्नपणे जणाव्यो पण नथी. अतएव बीजा विषयने मूकी अदंपर्य परमार्थवडे संशुद्ध ए त्रीजो प्रकार समजाववा ग्रंथकार एक श्लोकथी कथन करे छे-- परलोकविधौ मानं वचनं तदतींद्रियार्थदृग्व्यक्तं ॥ सर्वमिदमनादि स्यादैदंपर्यस्य शुद्धिरिति ॥१२॥
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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