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( ३७१) उत्कृष्ट पूजा करवी तथा शक्ति प्रमाणे अनेकविध बलियो, अमेकषिध सुगंधो, अनेकविध कुसुमो, अनेकविध सुवासो-चूर्णो, अनेक प्रकारनी रचनाओ, नाट्यो-गायनोबडे महोत्सव करवो, एटले अट्ठाईमहोत्सव,शान्तिस्नात्र, विविधरचनाओशक्ति अनुसार अवश्य करवी. त्यारपछी मूर्ति अग्रे चैत्यवंदन करी प्रवर्धमान स्तुतिरूप स्तुति करवी, तेमज विघ्नशान्ति अर्थे शासनदेवतानो एक 'लोगस्स'नो कायोत्सर्ग करवो, इष्ट गुरुदेवनुं स्मरण करवं. आटलं कर्या पछी प्रतिष्ठाप्य जिनबिंव अने प्रतिष्ठा करनारनी पूजा करी शुभ लग्न मुहूर्त्तमां पंचपरमेष्ठी नमस्कारमंत्रनुं स्मरणपूर्वक अथवा मंगलान्तरपूर्वक ते जिनबिंबनी प्रतिष्ठा करवी. आ रीते प्रतिष्ठा कर्या पछी प्रतिष्ठित बिंबनी पुष्प आदिथी पूजा करी चैत्यवंदन करवू, अने उपसर्ग नाश माटे फरी शासनदेवतानो कायोत्सर्ग करवो. बस आटली विधि कर्या पछी आ प्रतिष्ठाविधि पूर्ण थाय छे, माटे अहीं समाप्ति करवी अर्थात् देवताओने विसर्जन करवा, तेमज हृदयनी स्थिरता थाय तेम अने प्रतिष्ठा स्थिर बने तेवो आशिर्वादरूप प्रतिमा अग्रे निम्न लिखित मंगलमय गाथानो पाठ करवोःजह सिद्धाण पतिट्ठा तिलोगचूडामणिम्मि सिद्धिपदे । आदसूरियं तह होउ इमा
सुष्पति? ति ॥ १॥