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(८) प्रतिष्ठाविधिषोडशकम्
गत षोडशक प्रकरणमा विस्तारथी जिनबिंध' करण विधि दर्शावी. ए रीते यथोक्त विधिशुद्ध परम सुंदर मंत्रन्यासपूर्वक तैयार थयेल बिंब मंदिरमा सुप्रतिष्ठित कर्यु होय त्यारे ज साध्यसाधक बने; अन्यथा ते बिंब आशातना अने हानीकर्ता ज थाय माटे तेनी तुरतमा ज प्रतिष्ठा करवी ए आवश्यक अने शास्त्रनिर्दिष्ट मार्ग कहेवाय. अतएव संबंधप्राप्त अष्टम षोडशक प्रकरणमा आचार्य भगवान् प्रतिष्ठाविधिनु कथन करे छे. निष्पन्नस्यैवं खलु,
जिनबिंबस्योदिता प्रतिष्ठाशु ॥ दशदिवसाभ्यन्तरतः,
सा च त्रिविधा समासेन ॥ ८-१॥ मूलार्थ-उपर दर्शावेल विधि प्रमाणे तैयार थयेल * जिनबिंब' नी अवश्यमेव तुरतजमां एटले दश दिवसनी अंदर प्रतिष्ठा करवी एम शास्त्रो कहे छे. प्रा प्रतिष्ठा शास्त्रमा संचेपथी त्रण प्रकारनी जणावी छे.