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________________ (६) जिनमंदिरषोडशकम्. आगलना प्रकरणमां लोकोत्तरतरव' शुं अने तेनी प्राप्ति कोने तथा शाथी थाय ? ए वात कही, एटले सामान्य धर्मनी सिद्धि थया पछी लोकोत्तरतत्त्व प्राप्त थाय एम जणाव्यु. प्राथी आत्मा जिनमार्गमा आगल वधवाने अने उत्तरोत्तर परम गुणो इष्टकार्यसिद्धि करवाने योग्यतावालो थाय. निदान ए के-खरी लायकात तेमां आवे एम प्रतिपादन कयु. लायकात वगरनी वीतरागदर्शित क्रियाकुशलता उच्च गृहीजीवन अगर त्यागीजीवननो अधिकार उपलब्ध थाय तो पण ते भाडुती जीवन तुल्य होवाथी इष्टफल कदापि अर्पे नहीं, अतएव आ छट्ठा प्रकरणमा श्रीमान् हरिभद्रसूरिजी भगवान लोकोत्तरतत्त्व आत्माने प्राप्त थया पछी श्रात्मा क्या क्या कार्यों करवाने अने क्या स्थाने विराजवाने अधिकारी थाय तेनुं व्यक्तस्वरूप विस्तारथी प्रतिपादन करे छे. अस्यां सत्यां नियमाद्वि धिवजिनभवनकारणविधानं ॥ सिद्धयति परमफलमलं, ह्यधिकार्यारंभकत्वेन ॥६-१॥ मूलार्थ-श्रा उपरदर्शित 'लोकोत्तरतत्वनी' प्राप्ति थया पछी निश्चयथी धर्मी प्रात्मा स्वयं विधिपूर्वक वीतरागर्नु
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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