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( २७०) २, मैथुनसंज्ञा३, परिग्रहसंज्ञा ४, क्रोधसंज्ञा ५, मानसंज्ञा ६, मायासंज्ञा ७, लोभसंज्ञा ८, लोकसंज्ञा ९, अने ओघसंज्ञा १०" नारकीरोने भा दशे संज्ञानो होय तेमज यावत् वैमानिकोने पण ए दशे संज्ञाओ होय, तथा अन्य आत्माओने पण ए दशे संज्ञाओ होय." तुधावेदनीय कर्मनो उदय थवाथी कवल, ओज अने लोम आहारने माटे जे संज्ञाना बलथी आहार पुद्गलोने ग्रहण करवानी चेष्टा आत्मा आदरे तेनुं नाम आहारसंज्ञा १. भावार्थ ए के-ज्यारे ज्यारे जठराग्निना जोरथी आत्माने तुधा लागे एटले अग्निनुं जोर वधे त्यारे त्यारे तेनी शांति माटे आहारादि लेवानी चेष्टा आज संज्ञावलथी आत्मा करे छे. भयवेदनीय कर्मोदयथी आत्मा भयथी कमकमी उठे छ, द्रष्टि अने मुखना विकारो बदलाइ जवाथी तेना पर दुःखनी ज छांया तरी आवे छे, एवं तेनी रोमराजीनो पण एकाएक उभी थइ जाय छे. प्रा बधा विकारो जे संज्ञाना प्रभावथी जागृत थाय तेनुं नाम महर्षिओ भयसंज्ञा कहे छे. अहीं एक खुलासो करवानी आवश्यकता छ, ते ए केभय प्रकृतिने कर्मग्रंथमां नोकषाय चारित्रमोहनीयकर्म पैकी नव नोकषायांतर्गत भयमोहनीय तरीके जणावी छे, अने पा स्थले 'भयवेदनीयोदय' कही 'भय'ने वेदनीयकर्मप्रकृति तरीके जणावी. आनुं कारण ए समजाय छे केज्यारे भयना लीधे प्रात्मा मुग्ध बनी जइ भानभूलो थाय त्यारे ते भयमोहनीयोदय समजवो, अने ज्यारे ा मोहना उदयथी अशांति, दुःख के क्लेश अनुभवे छे त्यारे ते भय