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________________ ( २१३) विमलबोधः ' जेमांथी मल विशेषपणे गयो, छे एवो जे बोध ते विमलबोध जाणवो. आ विमलबोधनी प्राप्तिनो मार्ग शास्त्रकर्ता 'शुश्रूषाभावसंभवः ' ए वाक्यथी जणावे के, 'श्रोतुं इच्छा शुश्रूषा' 'शास्त्रो श्रवण करवानी इच्छा' शास्त्रोनां श्रवण विना अभ्यास न थाय तेम ज बोध पण न ज बने, माटे अहीं शास्त्रश्रवणभाव विमलबोध ' प्राप्तिनो मार्ग कह्यो. ा इच्छा परम अने अपरम ए बे प्रकारे वर्णवी के. जे शास्त्रश्रवण करवामां विनय, भक्ति, आदर अने श्रद्धा होय ते परम, तथा जे कुतूहल, मान आदिनी बुद्धिथी श्रवण कराय ते अपरम इच्छा. आनुं विशिष्ट स्वरूप ग्रंथकर्ता एकादश षोडश प्रकरणमां कहेवाना छे एटले अहीं अमे विशेष नथी जणावता. ' निर्मलबोध' नामे गुण केवा शास्त्रो श्रवण करवाथी उद्भवे ते ग्रंथकर्ता जणावे छे. 'शमगर्भशास्त्रयोगात् ' जे शास्त्रोमां प्रशम, वैराग तथा त्यागभावनुं स्वरूप यथार्थतया वर्णव्युं होय तेवा शास्त्रो श्रवण करवाी श्रोताना हृदयमा । निर्मलबोध' गुण प्रगटे छे, कारण के अन्यथा प्रकारना शास्त्रो श्रवण करवाथी मलिन वासनाओगें अधिक पोषण थाय माटे विमलबोध इच्छकोए केवल शृंगार, वीर के हास्यरसने बतावनार शास्त्रो सांभलवा नहीं. या 'निर्मलबोध' श्रुतसार, चिन्तासार अने भावनासार एम त्रण प्रकारे कह्यो छे. प्रा त्रणेनुं स्वरूप अने प्रत्येकनी भिन्नता शास्त्रकर्ता ज आगल विस्तारथी दर्शावशे. नितान्त अहीं समजवान
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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