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(१७३) व्याधियो भावी पडे. प्राथी धर्म प्राराघवानी इच्छा छतां ते रोगोना कारणे धर्मने पडतो मूके माटे पा विघ्नो विशिष्ट अंतरायभूत होवाथी मध्यम विघ्नो बुखार तुल्य कह्या; किन्तु जे पुरुष गमे तेवा व्याधिना समयमां पण पोतानी धर्मपतिज्ञायो अचल राखी नित्य कर्तव्य नियमोमां खामी प्राववा न दे अने विशिष्ट उत्साहथी शुभ धर्मनी आराधना करे तो ज दर्शाव्या प्रमाणे कंटकतुल्य हीनविघ्नजय अने ज्वरतुन्य मध्यमविघ्नजय नामे शुभ प्राशयनो आविर्भाव थयो छे तेवू जाणी शकाय. आईं अद्भूत बल प्राप्त थवाथी ज प्रथम कह्या प्रमाणे प्रवृति ' नामक प्राशयनी सफलता थाय छे. " मोहजयविघ्न" ___फरी मार्गमां आन्धी, रजोष्टि, जलवृष्टि भने धूमस विगेरे होय तो तो उपरना बन्ने प्रकारना विघ्नो जीतवानुं सामर्थ्य छतां घणा माणसो पूर्व-पश्चिम विगेरे दिशामो भूली जसाथी मार्गमा ज इधरउधर प्राथड्या करे छे, उलटा मार्ग पर चडी जाय छे अगर तो नाहिम्मत थइ बेसी जाय छे. पाछा फरी जाय छे; किन्तु विवेकी पुरुष भावा संयोगोमां पण विशिष्ट विचारो करी पोतानी निश्चल बुद्धिनी परीक्षाथी निडरपणे आगळ वध्यो जाय छे. अथवा बीजाओथी मार्गनुं ज्ञान करी तेनापर विश्वास राखी तीव्र उत्साहन अवलंबन करी मार्ग सन्मुख चाल्यो जाय छ तथाप्रकारे अहीं पण धर्ममार्गमां