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अथवा विचाराभाव के अन्य कोई विचित्र कारणोथी धर्माभावस्थलमां धर्मनी मान्यता करवाने ललचाय-मुग्ध थाय छे.
" लक्षण' नुं लक्षण
"
उष्ण
अत्रे लक्षण ते ज जाणवुं के जेनाथी उद्दिष्ट पदार्थथी इतर पदार्थनो निषेध थाय ने अभीष्ट पदार्थनुं बराबर पूर्णशे ज्ञान थाय. जेवुं के - ' उष्णस्पर्शवत्तेजः' एवो स्पर्श जेमां होय ते अग्नि ' अत्रे अग्निनुं लक्षण " उष्णस्पर्शपणुं " कहुँ. आथी अग्नि सिवाय जेटला पदार्थों तपासीए ते दरेकमां भिन्न भिन्न स्पर्शो कोइमां थंडो, कोइमां काठीण्यता, कोइमां कोमलता विगेरे छे खरा पण उष्ण एवो स्पर्श तो अग्निमां ज छे; अन्य पदार्थमां नथी देखातो. गरम जल, गरम लोढुं विगेरेपां जे जगाय छे ते पण अग्निनो ज गुण छे, कारण के ते पदार्थों तो जाते थंडा, मुदु भने कठीण छे. सूर्यनो ताप अने विजलीने पण नैयायिको अग्नितत्त्व जमाने छे, एटले आ लक्षणथी अन्य पदार्थनो निषेध थवाथी अग्निपदार्थं स्पष्ट स्वरूप समजाय छे. फरी आ लक्षणं अतिव्याप्ति, अव्याप्ति, तदेव हि लक्षयां यदव्याप्त्यतिव्याप्त्यसंभवरूपदोषशून्यम् " २ - " प्रतिव्याप्तिर्नाम लक्ष्ये लक्षण सत्त्वम् " निषिद्ध पदार्थमां लक्षगानी प्रवृत्ति ते अतिव्याप्ति, जेमके 'गो' नुं लक्षण 'महिषि' मां लागु थाय ते. ३ – “ अव्याप्तिर्नाम लक्ष्यैकदेशावृत्तित्वम् ” लक्ष्यना एक ज देशमां लक्षण लागु थाय ते अव्याप्ति, यथा 'गो' नुं लक्षण अमुक ज 'गो' मां लागु थाय ते.
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