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________________ (३) धर्मलक्षणषोडशकम् । " शंका अने संबंध " गत अधिकारना प्रारंभमां 'बाल' आदि वर्गने सद्धर्मनी देशना आपवानुं जणान्युं हतुं अने अंतमां " तथाप्रकारे उपदेश आपवाथी उपदेशक श्रोताने असाधारण धर्मप्रेम पैदा करे छे. " एटले बन्ने स्थलमां धर्म ए शब्द आवे छे. तो धर्म कोने को ? तथा धर्मनुं लक्षण शुं १ ए आशंकानो उत्तर जणाववा द्वारा पूर्वाधिकार साथै सुसंबधतया स्थित आचार्यश्री धर्मस्वरूपदर्शक तृतीयाधिकारनो आरंभ करे छे, उपदेशबलथी आत्माने जे धर्म प्राप्त थाय अथवा धर्म उपजावाय ते धर्म कोने कहेवो ? ए शंसय अशंसयपणे उत्पन्न थाय. अतः बीजा अधिकार पछी उपरोक्त शंकाने दूर करवाना संबंधवाळो या बीजो अधिकार दर्शावे छे. एटले श्रा अधिकार संबंधशून्य छे ए शंकाने अहीं अवकाश मळतो नथी. अस्य स्वलक्षणमिदं धर्मस्य बुधैः सदैव विज्ञेयं । यदादिमध्यांतकल्याणम् ॥ ३–१ ॥ सर्वागमपरिशुद्धं
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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