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(१३२) ग्रहीं 'बुध' वर्ग माटे दर्शाव्यो. अतः उपदेशके पण या स्वरूप बराबर ध्यानमा राखी तथाप्रकारे बुधजनने उपदेश करवो.
"श्रा अधिकारना प्रारंभमां ग्रंथकर्ताए बाल, मध्यम, बुध माटे उपदेशविधिनो प्रकार तत्त्वज्ञोए जे प्रमाणे कह्यो छे तथाप्रकारे जणाववानुं कडं हतुं" तो अहीं सुधी उपर दर्शाव्या प्रमाणे सिद्धान्तानुसारी उपदेशविधिना प्रकारो कह्या, एटले प्राचार्यश्रीए 'यथोद्देशः तथा निर्देशः' ए महर्षियोनुं कथन चरितार्थ कयु. हवे आ 'विधि' नो उपसंहार करी तथाप्रकारे उपदेशदान- अपूर्व फल दर्शावी उपदेशकोने ए दिशामा ज गमन करवानी सूचना प्रापी आ अधिकारने
पूर्ण करे ."
इति यः कथयति धर्म,
विज्ञायौचित्ययोगमनघमतिः॥ जनयति स एनमतुलं,
श्रोतृषु निर्वाणफलदमलम् ॥२-१६॥ मूलार्थ:-अनघमति-शुद्धमतिमान् एवा जे धर्मगुरू बाल, मध्यम आदिनी योग्यता बराबर परीक्षी योग्यता प्रमाणे धर्मोपदेश करे छे, तो तेश्रो श्रोताना हृदयमां मोक्षफलने अर्पण करनार एवा अनन्य-असाधारण धर्मभावनी श्रद्धा स्थापनउत्पन्न करे छे.