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________________ ( १०६) आठ प्रवचनमाता मातृवत् गुणधारिका होवाथी महर्षियो तेने माता कही संपूर्ण आराध्यतया उपदेशे छे, अर्थात् जन्मदातृत्व, पालनकर्तृत्व तथा शिक्षादातृत्व गुणो तेमां पण छे. प्रवचनसिद्धान्त तेने जन्म आपनार, ईर्यासमिति आदिमां उपयुक्त मुनिज सिद्धान्त-तत्त्वने पामी शके. सिद्धान्तनो अभ्यास, स्वाध्याय विगेरेना अधिकार आठ प्रवचनमातामां अनुपयुक्त मुनिने निषेध्यो छे. निदान के-सिद्धान्तना अभ्यासथी जे कल्याण सधावू जोइए ते कल्याण अनुपयुक्त मुनि सिद्धान्तनो अभ्यास करवा छतां पण साधवा असमर्थ बने छे. अतएव आ माताने प्रवचनजन्मदाता महर्षियोए कही. एवं उत्तरकालमां प्राप्त सिद्धान्तज्ञान अने सद्वर्तन तेनुं पालन तथा पोषण अधिकाधिक प्रा माता ज करे छे अने क्रमशः शिक्षाओ अी उत्तरोत्तर उपाध्याय, प्राचार्य आदि पदोना अधिकारो पर लइ जइ उच्च स्थाने आत्माने आ माता ज बीराजमान करे छे. परामर्श एटलो ज के-श्रा माता पोताना पुत्रने दुःख-क्लेशोथी बचावी ले छे तथा अपमार्गथी सर्वदा दूर ज राखे छे, माटे उपकारज्ञ पुत्रोनु ए प्रधान कर्त्तव्य छे के मातानो यत्किंचित पण अनादर न करवो जोइये, तो दुःख के क्लेशनी तो वात ज क्यां रही ? फरी माताना क्लेशथी पुत्रने क्लेश अने माताना नाशथी पुत्रनो पण परिणामे नाश थाय छे. एवं ईर्यासमिति आदिनो क्लेश उपजाववाथी अथवा नाश करवाथी प्रवचन श्राज्ञारूप पुत्रनो पण नाश ज थाय, माटे उत्कृष्ट कल्याण इप्सु (इच्छनारा) मुनियोए आ
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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