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________________ (६०) मूलार्थ-उपदेशके मध्यमवुद्धिवर्गने ईर्यासमिति आदि पांच समितिनुं स्वरूप तथा त्रिकोटिये शुद्ध आदि, मध्य अने अंतमां कल्याणकारी एवं साधु संबंधी सुंदर वर्तननुं निश्चयेन कथन करवू. "मध्यमवर्गनी योग्यता" ___ स्पष्टीकरण-पहेला प्रकरणना बीजा अने त्रीजा ग्लोकना विवरणमां आपणे तपासी गया के-मध्यमबुद्धिवर्ग बालवर्ग करतां बुद्धिमां तथा प्राचारमा चडतो होय छे, अर्थात् तेश्रो विचारशील होवाथी बाह्य आडंबरना खाली भभकामात्रथी खुशी थता नथी किन्तु अंदरना शुद्ध आचारोनी परीक्षा करवा माटे पोतानी बुद्धिने दोडावे छे. अतएव श्रा लोकोनी पासे आधिक्येन धर्ममां दृढ करवा माटे उपदेशके प्रधान एवा साधु आचारनुं स्वरूप जरूर प्रतिपादन करवू. निदान के-पागल जणावी गयेल आचारनुं प्रतिपादन आ लोको पासे करवू ते निरर्थक समजवु. पांचमी या छट्ठी चोपडीना अभ्यासकने पहेली चोपडीनो पाठ शीखवाडवा जेवू हास्यकारीज गणाय, कारण के उपर दर्शित साधुनोना बाह्य आचारो दुष्कर अने दुर्वाह्य छतां अमुक प्रकारना लोभ या मोहना कारणथी विनयरत्न आदिनी माफक घणा लोको सेवन करे छे. एवं खाली आत्मशुद्धि विना आवा प्रखर बाह्य श्राचारो आत्माए-"अणंताई दव्वलिंगाइं" ए वचनथी अनंती
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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