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________________ श्रावक धर्म विधि प्रकरण स्वरूप के साथ ही स्त्री, पुरुष और नपुंसक के लक्षणों को बताया गया है। बारहवें पद में औदारिकादि शरीर के सामान्य स्वरूप का वर्णन तथा तेरहवें पद की व्याख्या में जीव और अजीव के विविध परिणामों का प्रतिपादन किया गया है। आगे के पदों की व्याख्या में कषाय, इन्द्रिय, योग, लेश्या, काय स्थिति, अन्तक्रिया, अवगाहना, संस्थानादि क्रिया, कर्म- प्रकृति, कर्म-बन्ध, आहारपरिणाम, उपयोग, पश्यता, संज्ञा, संयम, अवधि, प्रविचार, वेदना और समुद्घात का विशेष वर्णन किया गया है। तीसवें पद में उपयोग और पश्यता की भेदरेखा स्पष्ट करते हुए साकार उपयोग के आठ प्रकार और साकार पश्यता के छः प्रकार बताए गए हैं। आचार्य हरिभद्र की कृतियाँ षोडशक : इस कृति में एक-एक विषयों को लेकर १६ - १६ पद्यों में आचार्य हरिभद्र ने १६ षोडशकों की रचना की है। ये १६ षोडशक इस प्रकार हैं - ( १ ) धर्मपरीक्षाषोडशक, (२) सद्धर्मदेशनाषोडशक, (३) धर्मलक्षणषोडशक, (४) धर्मलिंगषोडशक, (५) लोकोत्तरतत्त्वप्राप्तिषोडशक, (६) जिनमंदिरनिर्माणषोडशक, (७) जिनबिम्बषोडशक, (८) प्रतिष्ठाषोडशक, (९) पूजास्वरूपषोडशक, (१०) पूजाफलषोडशक, (११) श्रुतज्ञानलिङ्गषोडशक, (१२) दीक्षाधिकारिषोडशक, (१३) गुरुविनयषोडशक, (१४) योगभेदषोडशक, (१५) ध्येयस्वरूपषोडशक, (१६) समरसषोडशक । विंशतिविंशकाएँ : विंशतिविंशिका नामक आचार्य हरिभद्र की यह कृति २०-२० प्राकृत गाथाओं में निबद्ध है। ये विंशिकाएँ निम्नलिखित हैं - प्रथम अधिकार विंशिका में २० विंशिकाओं के विषय का विवेचन किया गया है । द्वितीय विंशिका में लोक के अनादि स्वरूप का विवेचन है। तृतीय विंशिका में कुल, नीति और लोकधर्म का विवेचन है। चतुर्थ विंशिका का विषय चरमपरिवर्त है। पाँचवीं विंशिका में शुद्ध धर्म की उपलब्धि कैसे होती है, इसका विवेचन है। छठी विंशिका में सद्धर्म का एवं सातवीं विंशिका में दान का विवेचन है। आठवीं विंशिका में पूजा-विधान की चर्चा है। नवीं विंशिका में श्रावकधर्म, दसवीं विंशिका में श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं एवं ग्यारहवीं विंशिका में मुनिधर्म का विवेचन किया गया है। बारहवीं विंशिका शिक्षा-विंशिका है। इसमें धार्मिक जीवन के लिये योग्य शिक्षाएँ प्रस्तुत की गयी हैं। तेरहवीं विंशिका भिक्षा-विंशिका है। इसमें मुनि के भिक्षा-सम्बन्धी दोषों का विवेचन है। चौदहवीं अन्तरायशुद्धि विंशिका में भिक्षा के सन्दर्भ में ५०
SR No.022216
Book TitleShravak Dharm Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorVinaysagar Mahopadhyay, Surendra Bothra
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages134
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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