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________________ (श्रावक धर्म विधि प्रकरण) हुए वृत्तिकार ने शिष्यहिता नामक आवश्यक टीका सम्पन्न की है। आचार्य हरिभद्र की यह वृत्ति २२,००० श्लोक प्रमाण है। ३. अनुयोगद्वार वृत्ति - यह टीका अनुयोगद्वार चूर्णि की शैली पर लिखी गयी है, जो कि नन्दीवृत्ति के बाद की कृति है। इसमें आवश्यक' शब्द का निक्षेप-पद्धति से विचार कर नामादि आवश्यकों का स्वरूप बताते हुए नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव का स्वरूप स्पष्ट किया गया है। श्रुत का निक्षेप-पद्धति से व्याख्यान किया है। स्कन्ध, उपक्रम आदि के विवेचन के बाद आनुपूर्वी को विस्तार से प्रतिपादित किया है। इसके बाद द्विनाम, त्रिनाम, चतुर्नाम, पञ्चनाम, षट्नाम, सप्तनाम, अष्टनाम, नवनाम और दशनाम का व्याख्यान किया गया है। प्रमाण का विवेचन करते हुए विविध अंगुलों के स्वरूप का वर्णन तथा समय के विवेचन में पल्योपम का विस्तार से वर्णन किया गया है। शरीर पञ्चक के पश्चात् भावप्रमाण में प्रत्यक्ष, अनुमान, औपम्य, आगम, दर्शन, चारित्र, नय और संख्या का व्याख्यान है। नय पर पुन: विचार करते हुए ज्ञाननय और क्रियानय का स्वरूप निरूपित करते हुए ज्ञान और क्रिया दोनों की एक साथ उपयोगिता को सिद्ध किया गया है। ४. नन्दी वृत्ति- यह वृत्ति नन्दीचूर्णि का ही रूपान्तर है। इसमें प्राय: उन्हीं विषयों के व्याख्यान हैं जो नन्दीचूर्णि में हैं। इसमें प्रारम्भ में नन्दी के शब्दार्थ, निक्षेप आदि एवं उसके बाद जिन, वीर और संघ की स्तुति की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए तीर्थकरावलिका, गणधरावलिका और स्थविरावलिका का प्रतिपादन किया गया है। नन्दी वृत्ति में ज्ञान के अध्ययन की योग्यताअयोग्यता पर विचार करते हुए लिखा है कि अयोग्य को ज्ञान-दान से वस्तुत: अकल्याण ही होता है। इसके बाद तीन प्रकार की पर्षद् का व्याख्यान, ज्ञान के भेद-प्रभेद, स्वरूप, विषय आदि का विवेचन किया गया है। केवल-ज्ञान और केवल-दर्शन के क्रमिक उपयोग आदि का प्रतिपादन करते हुए युगपद्वाद के समर्थक सिद्धसेन आदि का, क्रमिकत्व के समर्थक जिनभद्रगणि आदि का तथा अभेदवाद के समर्थक वृद्धाचार्यों का उल्लेख किया गया है। इसमें वर्णित सिद्धसेन, सिद्धसेन दिवाकर से भिन्न हैं, क्योंकि सिद्धसेन दिवाकर तृतीय मत अभेदवाद के प्रवर्तक हैं। द्वितीय मत क्रमिकत्व के समर्थक जिनभद्र आदि को सिद्धान्तवादी कहा गया है। अन्त में श्रुत के श्रवण और व्याख्यान की विधि बताते हुए आचार्य ने नन्द्यध्ययन विवरण सम्पन्न किया है। ५. जीवाभिगमसूत्र लघुवृत्ति - इस वृत्ति के अपरनाम के रूप में 'प्रदेशवृत्ति' का उल्लेख मिलता है। इसका ग्रन्थान ११९२ गाथाएँ हैं ५६ किन्तु
SR No.022216
Book TitleShravak Dharm Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorVinaysagar Mahopadhyay, Surendra Bothra
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages134
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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