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________________ (श्रावक धर्म विधि प्रकरण सस-एलासाढ -मूलदेव, खण्डा य जुण्णउज्जाणे। सामत्थणे .को भत्तं, अक्खात जो ण सद्दहति ॥ चोरभया गावीओ, पोलए बंधिऊण आणेमि । तिलअइरूठकुहाडे, वणगय मलणा य तेल्लोदा ॥ वणगयपाटण कुडिय, छम्मास हत्थिलग्गणं पुच्छे । रायरयग मो वादे, जहि पेच्छा ते इमे वत्था ॥ भाष्य की उपर्युक्त गाथाओं से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि भाष्यकार को सम्पूर्ण कथानक जो कि चूर्णि और हरिभद्र के धूर्ताख्यान में है, पूरी तरह ज्ञात है, वे मृषावाद के उदाहरण के रूप में इसे प्रस्तुत करते हैं। अत: यह स्पष्ट है कि सन्दर्भ देने वाला ग्रन्थ उस आख्यान का आद्यस्रोत नहीं हो सकता। भाष्यों में जिस प्रकार आगमिक अन्य आख्यान सन्दर्भ के रूप में आये हैं, उसी प्रकार यह आख्यान भी आया है। अत: यह निश्चित है कि यह आख्यान भाष्य से पूर्ववर्ती है। चूर्णि तो स्वयं भाष्य पर टीका है और उसमें उन्हीं भाष्य गाथाओं की व्याख्या के रूप में लगभग तीन पृष्ठों में यह आख्यान आया है, अत: यह भी निश्चित है कि चूर्णि भी इस आख्यान का मूलस्रोत नहीं है। पुन: चूर्णि के इस आख्यान के अन्त में यह स्पष्ट लिखा है - सेसं धुत्तावखाणगाहाणुसारेण (पृ० १०५)। अत: निशीथभाष्य और चूर्णि इस आख्यान के आदि स्रोत नहीं माने जा सकते। किन्तु हमें निशीथभाष्य और निशीथचूर्णि से पूर्व रचित किसी ऐसे ग्रन्थ की कोई जानकारी नहीं है, जिसमें यह आख्यान आया हो। जब तक अन्य किसी आदिस्रोत के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं है, तब तक हरिभद्र के धूर्ताख्यान को लेखक की स्वकल्पनाप्रसूत मौलिक रचना क्यों नहीं माना जाये ? किन्तु ऐसा मानने पर भाष्यकार और चूर्णिकार, इन दोनों से ही हरिभद्र को पूर्ववर्ती मानना होगा और इस सम्बन्ध में विद्वानों की जो अभी तक अवधारणा बनी हुई है वह खण्डित हो जायेगी। यद्यपि उपलब्ध सभी पट्टावलियों तथा उनके ग्रन्थ लघुक्षेत्रसमास की वृत्ति में हरिभद्र का स्वर्गवास वीर-निर्वाण संवत् १०५५ या विक्रम संवत् ५८५ तथा तदनुरूप ईस्वी सन् ५२९ में माना जाता है। किन्तु पट्टावलियों में उन्हें विशेषावश्यकभाष्य के कर्ता जिनभद्र एवं जिनदास का पूर्ववर्ती भी माना गया है। अब हमारे सामने दो ही विकल्प हैं या तो पट्टावलियों के अनुसार हरिभद्र को जिनभद्र और जिनदास के पूर्व मानकर उनकी कृतियों पर विशेष रूप से जिनदास महत्तर पर
SR No.022216
Book TitleShravak Dharm Vidhi Prakaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorVinaysagar Mahopadhyay, Surendra Bothra
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages134
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size12 MB
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