________________
(५५)
विस्तारथी वर्णवाता हैतना गुणोनी लीनतामां विभाव, अनुजावरूप अनय करवाथी विपरीत मनो नाश थायबे. रहस्य ए बेके, समापत्ति विगेरे नेदवडे अर्हतनुं दर्शन थ जोइए, समापत्तिनुं लक्षण योगशास्त्रना ग्रंथमांथी जाणी लेवु. ३२ दवे बाकीनुं तेज विषयने पुष्टिरूप कहे. पूजा पूजकपूज्य संगतगुणध्यानावधान क्षणे, मैत्री सत्वगुणेष्वनेन विधिना जव्यः सुखी स्तादिति । वैरव्याधिविरोधमत्सरमदक्रोधैश्च नोपप्लव,
स्तत्को नाम गुणो न दोष दलनो द्रव्यस्तवोपक्रमे ३३
अर्थ- पूजा, पूजक ने पूज्य, या त्रिपुटीसाथे मलेला गुणना ध्यान वखते या प्रव्यस्तवना विधिथी सर्व जव्यजन सुखी था ! एवी धारणा करवाथी सर्व प्राणी उपर मैत्री थायडे, तेमज वैर, व्याधि, विरोध, मत्सर, मद ने क्रोधसंबंधी कांइपण अनर्थ यतोनथी. तेथी द्रव्यस्तवना उपक्रम ( आरंभ ) मां दोष नाशक को गुण नथी ? अर्थात् सर्व गुणो दोषनाशक बे. ३३ विशेषार्थ - नथी.
सत्तंत्रोक्त दशत्रिका दिकविधौ सूत्रार्थ मुद्रा क्रियायोगेषु प्रणिधानतो व्रतभृतां स्याद् जावयज्ञो ह्ययं । नावापद्विनिवारणाद बहुगुणे ह्यप्यत्र हिंसामतिमूढानां महती शिला खलु गले जन्मोदधौ मऊतां|३४|
अर्थ - उत्तम शास्त्रमां कथन करेला दशत्रिक विगेरे विधिमां