SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५०) मुखने कोणे कोणे चुंबन नथी कर्यु? परंतु तेना हृदयने ग्रहण करनारा बेत्रण होय के न होय.” श्रा प्रमाणे जे अचेलक विगेरेने एक चेलादि आचारनुं अनुमोदवापणुंजे, तेपण ते कर्त्तव्य न मानवाथी सूत्रनीतिवडे स्पष्ट दोष ने, परंतु ते केवलिगम्य .२७ __ जो कदि जावस्तवनी वृधिने अर्थे व्यस्तवनी अनुमोदना अपेक्ष्य होय, तो अव्य पूजानी अपेदा केम न कराय? आ शंका उपर कहेजे. दुग्धं सप्पिरपेक्षते नतु तृणं सादाद्यथोत्पत्तये, जव्यार्चानुमतिप्रभृत्यपि तथा जावस्तवो नत्विमा । इत्येवं शुचिशास्त्रतत्वमविदन् यत्किंचिदापादयन् , किं मत्तोसि पिशाचकी किमथवा किं वातकी पातकी॥ ___ अर्थ- जेमघी पोतानी उत्पत्तिने अर्थे ऽधनी अपेक्षा करे. तेम घासनी अपेक्षा करतुं नथी. अर्थात् घीनी उत्पत्ति सुध उपर आधार राखेडे, घास उपर आधार राखती नथी. तेम नावस्तव जेवी अव्यस्तवनी अनुमोदननी अपेक्षा राखेने, तेवी अव्य पूजानी अपेक्षा राखतुं नश्री. या प्रकारना शास्त्रना पवित्र तत्वने नहीं जाणता एवा हे कुमति ! शुं तुं मत्त थयो? के तने पिशाच वलग्यो ? वा तने संनिपात थयो ? वा शुं पातकी थयो ? जेथी श्रावं असंबद्ध बोट्या करे. २० विशेषार्थ- जेम घी, उत्पत्तिमाटे सुधनी अपेक्षा करे, तेम तृणनी अपेक्षा करतुं नथी. कारण के उधमांथी घी व्यवधान वगर साक्षात् उत्पन्न थयेलुं जोवामां आवेळे. अने गायोए लक्षण
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy