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व्यस्तवमां हिंसानी अनुमोदना संबंधी विशेष जावथी सामान्य जाव बे, ते कहे बे. नाशंसानुमतिर्दया परिणति स्थेयार्थ मुद्यता, संवासानुमतिस्त्वनाय तनतो दूरस्थितानां कथं । हिंसाया निषेधनानुमति रप्याक स्थितानां न यत्, साधूनां निरवद्यमेव तदिदं द्रव्यस्तव श्लाघनं ॥ २७ ॥
अर्थ :- दयाना परिणामनी स्थिरताने माटे उद्यमवंत साधुने हिंसानी अनुमोदना गायज नहीं. तेमज हिंसाना स्थानश्री दूर रेहेनारा साधुर्जने त्यां वास करवानी अनुमति क्यांश्री होय. वली आज्ञा प्रमाणे वर्तनारा साधुर्जने हिंसाना निषेधनी अनुमति पण नथी तेथी तेजनाथी श्रती प्रव्यस्तवनी श्लाघा निर्दोषज ने.
विशेषार्थ :- " श्री अरिहंत जगवंतनी पूजाना दर्शनश्री घ जीवो सम्यग् दर्शन निर्मल करी, चारित्रनी प्राप्तिवडे सिद्धिप्रासाद उपर आरुढ था " एंवी जावनाथी पूजा करवी जोइए. वी दयाना परिणामनी स्थिरता माटे उद्यमवंत साधु ए हिंसानी अनुमोदना करी न गाय. कारण के उपदेशफलनी वामां हिंसानो विषय आवतोज नथी. वली हिंसाना स्थानथी दूर रहेनारा साधुर्जने त्यां वास करवानी अनुमोदनातो शी रीते होय ? हिं जो पुष्पादिकनुं स्थान ते अनायतन कहेलुं होय तो समवसरणमा रहेला मुनियोने पण अनायतनवतीं थवानो प्रसंग वे. देवगृहमां पण त्रण स्तुति कर्या पनी वधारेवार