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________________ ४ प्रस्तावना. मान स्वरुप प्रवर्ते बे, ते अपरिमित उपकार उपर ध्यान आपतां जेजे व्य आत्मा ते उपकारनो लान लहे बे. तेते नव्य श्रात्मार्जनी फरज बे के तेमणे ते तीर्थकर भगवंतनी नेतेमनेावे तेन प्रतिमानी नक्ति, नमन, वंदन ने पूजन क रवाज जोइए. संसारिक उपकार करनारा राजा, मंत्री के शेठनी अने तेमनेावे तेमनी बबी या प्रतिमानी जक्ति, नमन, पूजन, तेते उपकारने प्राप्त थयेला पोतानुं अवश्य कर्त्तव्य समजी करे बे, तो अनंतकाल सुधी संसारमां परिभ्रमण करावनारा दोषोना स्वरूपने यथार्थ रीते समजावी तेनाथी केवी रीते दूर थइ शकाय मृत्यु पुनः केम प्राप्त न थाय ने श्रा माने केवलज्ञान प्रमुख अनंत चतुष्टि केवी रीते प्राप्त थाय एवा उपदेशरूप उपकार प्राप्त करनारा जव्य आत्मार्जनी फरज ते ते उपकार करनार तीर्थकर भगवंताने तेमने अजावे तेमनी प्रतिमानी नक्ति, नमन, वंदन ने पूजन अवश्य कर्त्तव्यरुपे करवाज जोइए तेमां शुं नवाइ ! जे कर्त्तव्य समजता नथी छाने समजतां बतां प्रतिमा पूजन करता नथी अने तेथीपण उलट विरूद्ध या प्रतिमा पूजननो द्वेष करे बे तेर्ज खरेखरा कृतघ्नी वे एम न्यायपूर्वक साबित थाय बे. जन्म, जरा उपर प्रतिमा पूजन संबंधी मुख्य हेतु बताव्याबाद प्रतिमा पूजन, नमनादिथी शुं शुं लान थाय बे, ते विचार उपर जइए. जगतमां पांचे इप्रियोना विषयरूप थइ शके एवा जेजे पदार्थो बे, ते तमामना संबंधमां ज्यारे या आत्मा आवे बे, त्यारे अमुक स्थितिए पहोंचतां ते दरेक पदार्थ आत्माने र
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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