SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३०) जे मूलमां ने, तेथी महेंअध्वज, तोरण, सना अने शालभंजिका विगेरे ग्रहण करवा. देवताउनी, जिनेश्वरोनी प्रतिमानी पूजा, स्थितिमात्र , कारण के ते सर्वनुं सदृशपणुं बे, अर्थात् पूजा शब्द सर्वत्र समान बे. श्रा प्रमाणे कुमतियो बोले जे अने तेमां नेद जोता नथी. या प्रमाणे कदि जो ते स्त्रीपणुं सदृश जाणी पत्नी श्रने माता- एकत्व कहे तो क्यो बुद्धिशाली पुरुष तेना अतिशय फाटेला मुखने ढांकवाने प्रयत्न करे ? तेवा अशक्य अर्थमां पंडित पुरुषने यत्न करवानो अवकाश नथी. अहिं प्रतिवस्तूपमा अलंकार वडे घणुं अंतर उतां कांइक सदृश पणानो ज्रम करनारा कुमतियो- उपहास्य थयु. तेने माटे साहित्यमां लखे ने के " कागडामां स्वलावधीज कृष्णता के अने हंसोमां स्वनावधीज श्वेतता . वली बनेमां गंजीरता संबंधी अति अंतर बे, अने वाणीमां जे नेद ने तेनुं तो शुंजवर्णन करीए ? आ वीरीते बनेमां अनेक तफावतवाला विशेषणो बतां जे देशना लोको कागडा अने हंसना बच्चानो तफावत जोवे नहि अने बनेने सरखा गणे तेवा देशने हे मित्र! दूरथीज नमस्कार .” १३ __ हवे प्रतिमा पूजनमां नेदना हेतु बतावी ते नेदने नही जोनाराने आदेप करी कहे . सद्धर्मव्यवसाय पूर्वकतया शक्रस्तवप्रक्रिया, नावत्राजितहृद्यपद्यरचना लोकप्रणामैरपि ॥ दंतेऽतिशयं न चेद् जगवतां मूर्त्यर्चने स्वःसदां, बालस्तत्पथि लौकिकोऽपि शपथप्रत्यायनीया न किं१४
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy