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________________ ( २६ ) - पूर्वे वर्णवेला सूर्यान देवना कृत्यउपरथी प्रतिमानी पूजामां परलोकनी हितार्थता कहेली नथी. ते प्रतिमानी पूजा प्रगटते देवतानी स्थितिमात्र. कां धर्मनुं साधन नथी. श्राप्रमाणे जे कुष्ट बुद्धिवाला कुमतियो पोकार करी बबड्या करेबे, ते पूर्व ने पश्चात् रम्यतावाली, परजवना कल्याणसाथे म - लेली ने श्रागमकथित एवी ते प्रतिमा पूजनथी थती पूर्व पश्चात् हितार्थताने शुं नथी जोता. ११२ विशेषार्थ - श्रहिं धिकार करेला सूर्यानदेवना कृत्यथी प्रतिमानुं पूजन परलोकनी हितार्थता कदेवाय नहि, कारणके " ए यमे पेच्चा हिए " इत्यादि वचनथी "पचा पुरा हिश्राए " एटले पश्चात् पूर्वे हितार्थबे, एवं जे वचन बे, ते धनकर्षण स्थलमां पण कहेलुंबे. एप्रमाणे जिनप्रतिमानी पूजा प्रगटपणे देवतानी स्थितिमात्र, पण धर्मनी हेतुरूप नथी. आवी रीते जे कुमतियो पोकार करेबे, ते जाणे पोताना मस्तक पर रज फेंकता होय तेम गाढ प्रलाप करे. ते गमने विषे कथन करेली, पूर्व ने पश्चात् रम्यतावाली, पूर्व पश्चात् प्रतिमापूजन नी हितार्थता, जे परनवसंबंधी कल्याणना लाजसाथे मलेली बे, अर्थात् उजय लोकनी तारूपे जे परिणाम पामेली, तेने शुं नथी जोता ? तेवी हितार्थतानुं तेमने जे दर्शनबे, ते तेमनो मोटो प्रमादळे. मूलमां जे पूर्वपश्चात् रम्यताविषे वचन कहां, ते राज प्रश्नीय उपांगमां प्रमाणे कह्युं छे. तथाच तत्सूत्रं ॥ "तएणं तस्स सूरियाजस्स देवरस पंचविहाए पऊत्तिए पऊत्ति जावं यस्स समाएस्स इमेयारुवे ऊथिए पथिए महोगए
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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