SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२१) नगृह अने जिनबिंबमां नपुंसके प्रवर्ते ने अने जिनसताना वृक्ष अर्थमां पुलिंगे प्रवर्ते बे. तेथी एम सिद्ध थयुं के विपरीत व्युत्पत्तिवडे नाम नेद अने प्रत्ययना योगनो अर्थ पण उडी गयो, कारण के योगथी रूढि बलवान बे. जो तेम न होय तो पंकज शब्दनो व्युत्पत्ति अर्थ कादवमां श्रयेलु एवो बे, तेथी पंकज शब्द वडे शेवाल विगेरेनो बोध थवानो प्रसंग श्रावे. हवे वाक्यविषे कहे . आकांदावाला पदनो जे समुदाय ते वाक्य कहेवाय जे. अहिं" चेश्याइं वंदे" एटले चैत्योने ढुं वंदना करुं बुं एवो वाक्यार्थ , तेने ते ज्ञान अर्थसाथे घटावे चे, जेम के लगवंतनुं ज्ञान नंदीश्वरादिकमां वर्त्त जे. अहिं ज्ञानना जगवृत्तिपणाने बीजानुं साधारण्य आप, ते विस्मयकार क जे. हवे वचनविषे कहे जे. चैत्यशब्दनो ज्ञान अर्थ ते एकज ने अने अहिं शानअर्थे चैत्यशब्दनुं वितीया विनक्तिनुं बदुवचन मुकेने ते अनुचित ,कारण के कोइ ठेकाणे तेवू अनुशासन नथी तेमज तेवो पाठ पण नथी.जो तेम अतुं होत तो "केवल नाणं" ए स्थाने " केवल चेआई” एवो प्रयोग आववो जोइए. श्राप्रमाणे चारण मुनियोने प्रतिमा वंदनीय ,ए अधिकार कह्यो. __ हवे देवताउने प्रतिमा वंदनीय , ए अधिकारनो आरंज करी, तेमां प्रथम देवताए अर्हत् प्रतिमा शरण करवायोग्यचे, ते रूपे स्तुति करे. अर्हच्चैत्यमुनींअनिश्रिततया शक्रासनमावधि, प्राप्ती नगवान् जगाद चमरस्योत्पातशक्तिं ध्रुवं ।
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy