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________________ ( १७ ) लोचना कर्याथी शोधी शकाय तेम नथी. श्रावो कुतर्करूप सघलोनार मिथ्या कल्पना करनारा कुमतिना मस्तक उपर सदा रहो. या प्रमाणे शुजनयरूप उत्तम रस मिथ्या कल्पनारूप विषना विकारने परास्त करनार होवाथी अमृतरस समान बे. ते रसवडे श्रेष्ठ एव सिद्धांतना पारगामी उनी वाणी बे. ॥ ६ ॥ कुमतियोनो एवो मत बे के चारण मुनियोनी गतिनो जेटलो विषय को बे, तेटला प्रदेशमां जवानी परीक्षा करी जोवामांज तेमनो मुख्य उद्देश बे. ते परीक्षा करवा ज्यारे तेर्ज गमन करे बे, त्यारे ने पूर्व चैत्योनुं दर्शन श्रवाथी विस्मय थाय नेते विस्मयनेलीधे ते तेमनी वंदना करे छे, कां पोतानी प्रीति रसनाउल्लासथी करता नथी, माटे तेमनुं ते आचरण शिष्टाचार न कहेवाय. ते दृष्टांतथी सर्व साधुर्जने पण तेमने वंदन करवानी योग्यता तेवीज बे. याप्रमाणे ते कुमतियोनी शंका aara dat निषेध करे बे. तेषां न प्रतिमानतिः स्वरसतो लीलानुषंगानु सा, लब्ध्याप्तादिति कालकूटकवलोद्वारा गिरः पाप्मनां । हंतैवं न कथं नगादिषु नतिर्व्यक्ता कथं वेह सा, चैत्यानामिति तर्ककर्कश गिरा स्यात्तन्मुखं मुद्रितं । अर्थ:- ते चार मुनियोने प्रतिमानी वंदना पोताना प्रीति रसश्री नथी, पण लब्धिश्री प्राप्त थयेला कौतुक लीलाना प्रसंगथी बे. आवी कालकूटना कोलीयाना उद्गारजेवी ते पापीनी वाणी ने तेना उत्तरमां कहेवानुं के जो तेम होय तो ( मा २ -
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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