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________________ त्रण निदेपानो अनादर करी केवल नावोझास करवो अशक्य . शास्त्रप्रमाणे नामादि त्रणे निदेप हृदयमां होय त्यारे परम ध्येयरूप परमात्मा जाणे आपणी सन्मुख स्फुरणायमान होय, ह्रदयमा प्रवेश करता होय, मधुर बालाप करता होय अने सर्व अंगोअंग अनुलवता होय एम लागे जे. अने तेथी सर्व कट्याणनी सिद्धि थाय . माटे त्रण निदेपना आदर विना जावनिदेप केवी रीते थश् शके ? नावोदास तेनेज आधीन ने. पूर्वपक्ष- जावोदास स्वालाविक थाय. - उत्तरपक्ष- लावोझास स्वनाविक थाय एवो एकांत निश्चय होयज नही, जो तेम मानीए तो अनेकांत जैनमतमां सर्व व्यवहारना उजेदनो प्रसंग श्रावे. (अहिं प्रतिमा लुपकोने जे विशेषण आपी अंध पुरुषोनी साथे सरखाव्या ,ते उत्प्रेक्षा अलंकार थाय अथवा कटिपत उपमा अलंकार पण थाय. ते बाबत श्रखंकार ग्रंथमां निपुण पुरुषोए योग्य लागे तेम जाणी लेवं.) . श्रा प्रमाणे स्वगत अध्यात्मना गुणवडे चार प्रकारे वंदनानुं योग्यपणुं सूचव्यु. तेमां मस्तक श्रने चरणना संयोगरूप वंदन जाव जगवंतना शरीरमांज संजवे, परंतु श्राकाशनी जेम अरूपी एवा नाव लगवंतमां ते संजवतुं नथी. श्रने नावना संबंधी शरीरसंबंधी वंदन जावनेज लागुपडे. पूर्वपक्ष- नामादिसंबंधी वंदन पण नावने केम न प्राप्त थाय ? महानिशीथ सूत्रमा नावाचार्यने तीर्थकर तुट्य कहेला ने अने तेना त्रण निदेपने नकामा गणेला .तेना पांचमा श्रध्ययनमां कडं ने के “ चार प्रकारना आचार्य जाणवा, तेमां
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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