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________________ ( १०६ ) जनवाली ऐक्यताने कथन करता एवा तमोने क प्रतिष्ठा इष्ट थाय. ? अर्थात् कोपण इष्ट याय नहीं; अने तेथी तेनी व्यर्थता थाय. तेना उत्तरमां कहे बे के सत्यरीते ते प्रतिष्ठा देव विषयना उद्देशश्री आत्माने विषे प्राप्त थयेली मुख्यपणे कथन करेली छे, कारण के विधिथी उत्पन्न थयेल जे अदृष्ट नामे - त्मगत अतिशय ते पूजाना फलना प्रयोजनरूप बे; तेथी करीने श्रात्मगत एवातिशयने समानाधिकरणने पर्यंते मुक्तिनुं फल पण प्राप्त थाय बे, ते कहे बे. जे प्रतिष्ठाथी नियोग वाक्यरूप निवडे परमात्मारूप पात्रने विषे समापत्ति प्राप्त करी जीवरूप लोढाने सिपणारूप कनकपणुं थ‍ जाय बे. ते प्रतिष्ठा सर्वोत्कृष्ट बे. ७५ हिं शंका याय के श्रात्माना प्रतिष्ठापणामां पण प्रतिमानुं प्रतिष्ठितपणुं थायाने ज्यारे प्रतिष्ठाना कर्त्ताना श्रदृष्टनो क्ष्य थाय त्यारे प्रतिमानी पूज्यतानी श्रसिद्धि थाय, ते शंकाना समाधानमां कहे . बिंबेसावुपचारतो निजहृदो जावस्य संकीर्त्यते, पूजा स्याद्विहिता विशिष्टफलदा द्राक् प्रत्यनिज्ञा यथा । तेनास्यामधिकारिता गुणवतां शुद्धोशयस्फुर्त्तये, वैगुण्ये तु ततः खतोप्युपनतादिष्टं प्रतिष्ठाफलं ॥ ७६ ॥ अर्थ - पोताना हृदय संबंधी अध्यवसायना उपचारथी ए प्रतिष्ठा जिनबिंब विषे कथन करेली बे, जेम सत्वर करेली प्रत्यनिज्ञा - पंधाणीनी पूजा विशेष फल श्रापनारी थाय. तेथी ए प्र
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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