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________________ ( ए१ ) सच्चक्रे खलु या न नारदमृषिं मत्वा वृता संयतं, मूढानामुपजायते कथमसौ न श्राविकेति नमः ॥६५॥ - औपदी सूर्यान देवनी जेम जक्तिश्री तीर्थकर भगवाननी प्रतिमानुं पूजन करेलुं हतुं, श्रावुं प्रतिवादीना गर्वने नाश करनार बठा ( ज्ञाता सूत्र ) अंगनुं कथन बे. वली जे द्रौपदीए नारद ऋषिने व्रतरदित जाणी, तेमनो सत्कार कर्यो न हतो, बतां ते पदी श्राविका नथी एवो मूढ लोकोने केम चम थाय बे १६५ विशेषार्थ - सती प्रौपदीए राजप्रश्नीय उपांगमां कथन करेला वृत्तांतवाला सूर्याजदेवनी जेम जक्तिपूर्वक तीर्थकर भगवाननी प्रतिमानुं पूजन कर्यु हतुं श्र प्रमाणेना श्रर्थने सूचवनारूं श्री ज्ञातासूत्र नामना बता श्रंगनुं कथन लुंपकमतिना गर्वने मथन करनारूं बे. हिं पक घुर्मति मिथ्या गर्वरूप एवो कुतर्क करे प्रौपदी प्रतिमापूजन करेलुं होय तो जले, परंतु तेलीने पांचमुं गुणस्थान प्राप्त थयुं न होतुं तेना समाधानमां कहे बे के, ते प्रौपदीए नारदऋषिने व्रतरहित जाणीने तेनो सत्कार पण कर्यो नहतो, बतां द्रौपदी श्राविका नथी, एवो भ्रम हे मूढपुरुषो ! तमने केम थाय बे ? वली प्रतिमापूजन करतां तेमने समकित प्राप्त थयेलुंबे, एम पण सूत्राक्षरे दर्शाव्यं बे. तथा नियाणाना फलना जोग पक्षी प्रौपदीने देशविर तिपणानो संजव नहतो एवं वचन पण बुद्धिनी अंधतामात्रनुं फल बे. नियाखाना प्रतिबंधपणामां तेनुं पार्यंतिक फल प्राप्त थया विना कृ
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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