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________________ (00) अंग मध्येनी आनंद श्रावकनी कथा श्रवण करी, तेमणे करेली नामग्रहणपूर्वक कर्त्तव्यरूपे कहेली वंदनाने सांगली, तेमज तापसोमां श्रेष्ठ एवा अंबड श्रमणोपासकनी औपपातिक ( जववाइ ) अंगमां वर्णवेली, अन्यतीर्थना चैत्यनी उपासनानो त्याग करावनारी कथा श्रवण करी पोताना हृदयमांथी दुर्मतिने बोडतो नथी तेवा दुर्मतिने, पोताने अत्यंत प्रिय आश्रय महयो बे एम धारी ज्ञानावरणादि कर्मों बोडतां नथी. " तेां से दे गाहावती समणस्स जगव महावीरस्स " इत्यादि सप्तमांगनो आलापक बे. ते यालापकमां वख्यं बे के हे जगवंत ! मारे ते कल्पे नहीं. इत्यादि विस्तारथी सप्तमांगमां अवलोकन करवुं. ते कथामां अन्यतीर्थीकोए ग्रहण करेला चैत्यने वांदवाना निषेधमां, निश्रीत अर्हत चैत्यवंदनादिकनी विधि स्फुट रीते दर्शावी बे. वली औपपातिक उपांगमां अंबड तापसे अईत चैत्यने पोताना कंग्यीज नमस्कार करेलो बे, एम उत्तराध्ययनना सम्यक्त्व पराक्रम नामना अध्ययनमां स्फुटरीते कथन करेल बे, तथापि लुंपको पूजाविधिने जोता नथी ते तेमनो पोतानोज अपराध बे. अंधपुरुषो थांजलाने जोवे नहीं, अने चालतां थांजलो वागे, तेमां थांजलानो अपराध न कहेवाय. वली उत्तराध्ययनना सम्यक्त्व पराक्रम अध्ययनना समकित श्रालापकमां सूक्ष्मदृष्टिए जोवाथी गुरु साधर्मिकनी सेवाना फलने बतावतां पूजानुं फल पण ते स्थले जावेलं बे, एम विधानोए जाणी लेवुं. ६३
SR No.022204
Book TitlePratima Shatak
Original Sutra AuthorYashovijay Maharaj
AuthorBhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages158
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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