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________________ ( ६१ ) करने लग जायें तो मानों समुद्र में बलवान मत्स्य निर्बल मत्स्य - को खा जाते हैं, वही नीति हुई." इत्यादि, इस कथनका राजा के मन पर कुछ भी असर न हुआ, उसने उलटे मंत्री आदिको निकाल दिये और नाना भांतिसे अग्निवर्षा के समान दुर्वचन कहने लगा | मंत्रियोंने सोमश्रेष्ठको समझाया कि "हे श्रेष्ठ ! अब कोई उपाय नहीं दीखता । हाथीको किस भांति कान पर रखना चाहिये ? जो खेतके आस पास लगाई हुई बाड ही खेत खाने लगे तो क्या उपाय किया जाय ? कहा है कि जो माता - पुत्रको विष दे, पिता पुत्रको बेचे और राजा सर्वस्व हरण करे तो उपाय ही क्या ? पश्चात् समष्टिने बहुत खिन्न होकर अपने पुत्रसे कहा कि, " हे श्रीदत्त ! दुर्भाग्य से अपना बहुत ही मान भंग हुआ है, समय पर पितामाताका पराभव तो पुत्र भी सहन कर सकता है, परन्तु स्त्रीका पराभव तो तिथेच भी नहीं सह सकता. अतः कोई भी उपाय से इसका बदला अवश्य देना चाहिये । मुझे इस समय द्रव्यका उपयोग ही एक मात्र उपाय दीखता है, अपने पास छः लाख रुपये हैं, उसमेंसे पांच लाख साथ लेकर मैं कोई दर देश जाऊंगा, वहां जाकर किसी बलिष्ठ राजा की सेवा करूंगा तथा उसे प्रसन्न करके उसकी मदद से क्षणभर में तेरी माता को छुडा लाऊंगा । अपने में प्रभुता न हो व राजा भी वशमें न हो तो इष्टकार्यकी सिद्धि किस तरह हो सकती है ? T
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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