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________________ (७९२) प्रशस्ति विख्याततपेत्याख्या, जगति जगच्चन्द्रसूरयोऽभूक्न् । श्रीदेवसुन्दरगुरू -त्तमाश्च तदनु क्रमाद्विदिताः ॥१॥ अर्थः--इस जगत्में 'तपा' ऐसा प्रख्यात नाम धारण करने वाले श्रीजगच्चन्द्रसूरि हुए. उनके बाद अनुक्रमसे प्रख्यात श्रीदेवसुन्दर गुरुवर्य हुए ॥११॥ पंच च तेषां शिष्या-स्तेष्वाद्या ज्ञानसागरा गुरवः ॥ विविधावचूर्णिलहरि--प्रकटनतः सान्वयाह्वानाः ॥२॥ अर्थः--उनके पांच शिष्य थे. जिनमें प्रथम शिष्य श्रीज्ञानसागर गुरु हुए. विविधप्रकारकी सूत्रोंकी अवचूर्णिरूप लहरें प्रकट करके उन्होंने अपना ज्ञानसागर नाम सार्थक किया ।।२।। श्रुतगतविविधालापक--समुद्धृतः समभवंश्च सूरीन्द्रः ।। कुलमण्डना द्वितीयाः, श्रीगुणरत्नास्तृतीयाश्च ॥३॥ अर्थः-शास्त्रस्थित विविध आलापकके उद्धार करनेवाले कुलमंडन नामक सूरीन्द्र दूसरे शिष्य और श्रीगुणरत्न नामक तीसरे शिष्य हुए ॥३॥ षड्दर्शनवृत्तिक्रिया--रत्नसमुच्चय-विचारनिचयसृजः ॥ श्रीभुवनसुन्दरादिषु, भेजुर्विद्यागुरुत्वं ये ॥४॥
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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