SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 810
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७८७) से भी आरंभ न कराना । १० उद्दिष्टपरिहारप्रतिमा, उसमें दस मास पर्यंत मस्तक मुंडाना अथवा चोटी मात्र धारण करना, निधान में रखे हुए धन के सम्बन्ध में कोई स्वजन प्रश्न करे तो यदि ज्ञात हो तो बता देना और ज्ञात न हो तो इन्कार कर देना, शेष सर्वगृहकृत्योंका त्याग करना, तथा अपने निमित्त तैयार किया हुआ भोजन भी भक्षण न करना । ११ श्रमणभूतप्रतिमा, उसमें ग्यारह मास पर्यंत घरआदि छोडना, लोच अथवा मुंडन कराना, ओघा, पात्रा आदि मुनिवेष धारण करना, अपने संबंधी गोकुलआदिमें निवास करना, और " प्रतिमावाहकाय श्रमणोपासकाय भिक्षां दत्त " ऐसा कह साधुकी भांति आचार पालना, परन्तु धर्मलाभ शब्दका उच्चारण नहीं करना । अट्ठारहवां द्वार— अन्तमें याने आयुष्यका अन्त समीप आने पर निम्नां - कित रीतिके अनुसार संलेखना आदि विधी सहित आराधना करना । इसका भावार्थ यह है कि – “ वह पुरुष अवश्य करने योग्य कार्यका भंग होने पर और मृत्यु समीप आने पर प्रथम संलेखनाकर पश्चात् चारित्र ग्रहण करे " इत्यादि ग्रंथोक्त वचन है, इसलिये श्रावक आवश्यकीय कर्त्तव्यरूप पूजा प्रतिक्रमणआदि क्रिया करनेकी शक्ति न होय तो अथवा मृत्यु समीप आ पहुंचे तो द्रव्यसे तथा भावसे दो प्रकारसे संलेखना करे । उसमें
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy