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________________ ( ७८४ ) शीतके अनुसार समस्त कार्यों में पूर्णप्रयत्नसे यतनाहीसे प्रवृत्ति करनेवाला, किसी जगह भी जिसका चित्त प्रतिबंधको प्राप्त नहीं हुआ ऐसा और अनुक्रमसे मोहको जीतनेमें निपुण पुरुष अपने पुत्र भतीजे आदि गृहभार उठानेको समर्थ हों तब तक अथवा अन्य किसी कारणवश कुछ समय गृहवास में बिता कर उचित समय अपनी तुलना करे. पश्चात् जिनमंदिर में अट्ठाइ उत्सव, चतुर्विधसंघकी पूजा, अनाथआदि लोगों को यथाशक्ति अनुकम्पादान और मित्र स्वजन आदिको खमाना इत्यादिक करके सुदर्शन श्रेष्ठीआदि की भांति विधिपूर्वक चारित्र ग्रहण करे. कहा है कि कोई पुरुष सर्वथा रत्नमय जिनमंदिरोंसे समग्र पृथ्वीको अलंकृत करे, उस पुण्य से भी चारित्रकी ऋद्धि अधिक है. वैसेही पापकर्म करने की पीडा नहीं, खराब स्त्री, पुत्र तथा स्वामी इनके दुर्वचन सुनने से होने वाला दुःख नहीं राजा आदिको प्रणाम नहीं करना पड़ता, अन्न वस्त्र, धन, स्थान आदिकी चिन्ता नहीं करनी पडती, ज्ञानकी प्राप्ति होवे, लोक द्वारा पूजे जावें, उपशम सुखमें रक्त रहे और परलोक में मोक्ष आदि प्राप्त होवे. चारित्र में इतने गुण विद्यमान हैं. इसलिये हे बुद्धिशाली पुरुषो ! तुम उक्त चारित्र ग्रहण करनेका प्रयत्न करो. पन्द्रहवां द्वार यदि किसी कारणवश अथवा पालनेकी शक्ति आदि न होनेसे जो श्रावक चारित्र ग्रहण न कर सके तो आरंभआदि
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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